स्वागत | सम्पूर्णानंद मिश्र
स्वागत | सम्पूर्णानंद मिश्र
पूरा देश
खड़ा है
नववर्ष के स्वागत में
दरअसल
अतीत के घाव
जो हमारी देह पर थे
कुछ सूख चुके हैं
कुछ सूख रहे हैं
ऐसे में
कड़वी स्मृतियों के कांटें
उस घाव को
फिर से न हरा कर दें
नहीं कोई चाहता
नववर्ष की ड्योढ़ी पर
पहुंचने से पूर्व
देश चपेट में है
शीतलहर और चुनाव के
इस समय
नहीं सूझ रहा है कोई
चेहरा नेतृत्व का
विपक्ष को
दरअसल
सब एक दूसरे के
चरित्र को सूंघ चुके हैं
जिसकी पूंछ उठायी
उसको मादा पाया
का बोध हरेक को है
मंदिरों के सामने
नंग-धड़ंग बच्चे
शीत से घुघुवा रहे हैं
आने जाने वाले
भक्तों की
आंखों में अपनी
उम्मीदें पाल रखें हैं
सिलिया
इस शीत में
बालपोथी की किताब लेकर
फटी कमीज़ पहने
मिड-डे मील के लिए
विद्यालय जा रही है
सब जन पढ़ें
सब जन बढ़े
के इस नारे को
चरितार्थ कर रही है
इक्कीसवीं सदी
के भारत का भविष्य
आंकड़ों में तो उज्ज्वल है
लेकिन
हक़ीक़त में स्याह है
अपने आत्मीयजन
के खोने की पीड़ा
उनसे पूछो
जो प्रतिदिन
अपनी आंखों के आंसू
से नहा रहे हैं
बेटियां ताड़ की तरह
बढ़ रही हैं
चिंता से
माता- पिता के चेहरे पर
झुर्रियां अपना
स्थायी घोंसला बना लीं हैं
खैर
2024 में
सब सुखी और निरोग हों
सभी का भविष्य
उज्ज्वल हो
सभी की मनोकामनाएं पूर्ण हों
ऐसी सुखद
कामना की जा रही है!
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874