व्यथा हिंदी कविता / वेदिका श्रीवास्तव
व्यथा हिंदी कविता / वेदिका श्रीवास्तव
नैतिकता तो खो सी गयी और मानवता का पूछो मत ,
सरकारी हो य़ा व्यक्तिगत लाभ कमाना चाहे सब ,
बड़ी व्यथा है ,बड़ी व्यथा है
चन्द कागज के नोटो से खरीद रहे हैं हम खुशियां ,
भूल भटक ईमान गए ,बढ़ती जाती दूरियां ,
बड़ी व्यथा है ,बड़ी व्यथा है
बदले -बदले से हर नाते ,ना चिठ्ठी,ना तार रहा अब ,
दूर -दूर से हाल है पुछे ,अपनो में बढ़ती नफरत ,
बड़ी व्यथा है ,बड़ी व्यथा है
प्रेम भावना का कर तरपन ,दानवता जन्मा मानव में ,
कूट -कूट छल भरता जाता हर नर में ,
बड़ी व्यथा है ,बड़ी व्यथा है
अंग प्रदर्शन बना है अब तो ,सबसे बड़ा रोजगार ,
ज़ितनी मैली छवि बनाओ ,उतनी होती जय -जयकार ,
बड़ी व्यथा है ,बड़ी व्यथा है
अब भारत की संस्कृति को थोड़ा चुप रहना होगा ,
पहचान अपनी छोड़े हैं ‘हम’,कटाक्ष हमे अब सहना होगा ,
कहती ‘वेदि ‘,हे !रघुनन्दन फिर आजाद मुल्क को करना होगा !
महाभारत ,रामायण से आखिर सीखा हमने क्या है,
बड़ी व्यथा है ,बड़ी व्यथा है
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