आ गया राखी का त्यौहार / डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश
आ गया राखी का त्यौहार / डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश
आ गया राखी का त्यौहार
आ गया राखी का त्यौहार
बहना का भैया पर अपने बरसेगा शुभ प्यार।।
आ गया राखी का त्यौहार।।
नहीं बताना कभी इन्हें यह मात्र सूत्र के धागे
जिसके हाथ में बँधे उनके अपने भाग्य हैं जागे
छिपा है इनमें भगिनी हृदय का पावन प्यार उदार।
आ गया राखी का त्यौहार।।
देश विदेश से चलकर कैसे कैसे आती राखी
जैसे लाँघ अनंत दूरियां आते घर को पाँखी
टूट टूट कर जुड़ते हैं यह कर जाते उपकार।।
आ गया राखी का त्यौहार।।
धर्म जाति क्षेत्रीय परिधि से ऊपर इसका स्थान
नेह मुख्य होता ,जो देता आपस को सम्मान
कोमल मन में पली शुभेच्छा का है यह उपहार।।
आ गया राखी का त्यौहार।।
कंचन रजत से नहीं कोई इन्हें खरीद है पाया
मन मंदिर के सुघर भाव ने
इनको है सरसाया
प्रेम की पूँजी नहीं है मिलती
जाने पर बाजार।।
आ गया राखी का त्यौहार।।
कभी हुमायूं ने कर्मवती की राखी स्वीकार किया
चला दूर से रोकने शाह बहादुर, को प्रस्थान किया,
समय से पहले क्षत्राणी की काया हो गई छार।।
आ गया राखी का त्यौहार।।
थाली में जब सज जाती है आरती अक्षत चंदन
तिलक लगा आशीष लुटा बहना करती अभिनंदन
आपस का यह हृदय प्रेम देता जीवन आधार।।
आ गया राखी का त्यौहार।।
डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश
अन्य पढ़े ;
हिंदीरचनाकार (डिसक्लेमर) : लेखक या सम्पादक की लिखित अनुमति के बिना पूर्ण या आंशिक रचनाओं का पुर्नप्रकाशन वर्जित है। लेखक के विचारों के साथ सम्पादक का सहमत या असहमत होना आवश्यक नहीं। सर्वाधिकार सुरक्षित। हिंदी रचनाकार में प्रकाशित रचनाओं में विचार लेखक के अपने हैं और हिंदीरचनाकार टीम का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।
यदि आपके पास हिन्दी साहित्य विधा में कोई कविता, ग़ज़ल ,कहानी , लेख या अन्य जानकारी है जो आप हमारे साथ साझा करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ ईमेल करें. हमारी id है: info@hindirachnakar.com पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ प्रकाशित करेंगे. धन्यवाद .