Akhabaar Baal Kavita-सीताराम चौहान पथिक
Akhabaar Baal Kavita
अखबार
बाल – कविता
बाबा का अखबार खो गया ,
पारा उनका पार हो गया ।
मम्मी- पापा पर वह बिगड़े ,
ला – परवाह हो, तभी खो गया ।
पापा ने हर कोना छाना ,
मम्मी ने घर -आंगन छाना
बच्चों ने भी कसर ना छोड़ी,
फिर भी मिला ना ताना-बाना
बाबा खड़े- खड़े समझाते ,
उपदेशों की झड़ी लगाते ।
अखबारों की आदत डालो ,
दुनिया निकल गई है आगे।
मम्मी-पापा छोटे बच्चे ,
बच्चे तो हैं मन के सच्चे ।
बोले – बाबा याद करो कुछ ,
याददाश्त में आप हो कच्चे ।
बाबा का दिमाग़ चकराया ,
ज़ोर लगाया –सिर खुजलाया ।
याद तभी बाबा को आई ,
शर्मा जी ने था मंगवाया ।
तभी ज़ोर से हाॅक लगायी ,
अखबार हमें दे जाओ भाई।
शर्मा जी ने माफी मांगी ,
भूल गए थे , याद ना आई ।
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