Bal Kavita Maa – बाल कविता माँ / अरविन्द जायसवाल
Bal Kavita Maa – बाल कविता माँ / अरविन्द जायसवाल
बाल कविता (माँ)
नन्हें मुन्ने बालक बोले,
घर आना चन्दा मामा,
एक चाँद मेरे घर रहता,
मिल जाना चन्दा मामा।
तुम तो केवल पुए पकाते,
हँस हँस करके हमें खिलाते,
मेरा चाँद तो घर में रहता,
हर ख्वाहिस को पूरी करता।
इतने गुण उसमें बसते हैं,
लोग नमन् उसको करते हैं,
खीर पकौड़ी पूरी हलवा,
मुझको रोज खिलती माँ।।
नन्हे मुन्ने बालक बोले,
घर आना चन्दा मामा।१।
क्या बतलाऊँ रोज सवेरे,
ममता का आँचल ढककर,
पुचकारे दुलाराये हमको,
अमित अलौकिक सुख देकर।
काँधे पारे झूला झुलाये,
नींद नींद से हमें जगाये,
बोले लाल सवेरा आया,
चिड़ियों से मिलवाती माँ।।
नन्हे मुन्ने बालक बोले,
घर आना चन्दा मामा। २।
जब भी दारुण ब्यथा सताये,
जाग जाग कर दुःख बांटे,
सुख ही सुख देती है हरदम,
चुन लेती है सब काँटे।
अथक परिश्रम करते करते,
जीवन अर्पण कर देती,
उंगली पकड़ के भोर शाम तक,
चलना मुझे सिखाती माँ।।
नन्हें मुन्ने बालक बोले,
घर आना चन्दा मामा।३।
घोड़ा गाड़ी खेल खिलौने,
छुक छुक गाड़ी दिलवाती,
परियों की गाथा गा गाकर,
सैर वहाँ की करवाती।
मैं चाहे जितना भी रूठूँ,
खेल खिलौने सभी तोड़ दूँ,
पर अरविंद कभी ना रूठे,
ऐसी प्यारी प्यारी माँ।।
नन्हें मुन्ने बालक बोले,
घर आना चन्दा मामा।
एक चाँद मेरे घर रहता,
मिल जाना चन्दा मामा।४।
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