रश्मि लहर हिन्दी कविता – Hindi Poetry Collection of Rashmi lehar

रश्मि लहर हिन्दी कविता – Hindi Poetry Collection of Rashmi lehar

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हाँ महिलाएं भी..
बहुत कुछ समझती हैं

हाँ महिलाएं भी..
बहुत कुछ समझती हैं..
तुम्हारे शब्दों के चयन का भारीपन!
या.. हल्की सी.. यूं ही ..वाली भाषा!
तुम्हारे विचारों में अपनी परिभाषा..
हाँ महिलाएं ही..
कठिन समय में
नहीं छोड़ती उम्मीदों का साथ!
भले नहीं सजाती..
आश्वासनों का आकाश..
पर बिखेरती चलती हैं
तुम्हारी रातों में ..
अनेकों आशाओं भरे पलाश।
जताती नहीं अपना रोष..
जबकि अक्सर होती हैं वो निर्दोष!
फिर भी सह-सहकर भरती जाती हैं ..अपना अनुभव-कोष।
हाँ महिलाएं ही..
सृजन करती हैं भावी पीढ़ी का..
बन जाती हैं सहारा एकाकी पीरी का..
हाँ महिलाएं भी..
चाहती हैं बस आँचल के कोने भर का सुख!
और तत्पर रहती हैं बाँटने को ..पूरी कायनात का दु:ख।
हाँ महिलाएं ही..
करती चलती हैं समझौता
रिश्तों में..रूपये-पैसों में..
और अपनी ख्वाहिशों में..
सिखाती रहती हैं गृहस्थी का
हर रूप सँजोना..
चमकाती रहती हैं..
घर, रसोई ..
बगीचा और मन..का हर उपेक्षित कोना..
जिससे.. चमकते रहो तुम
आत्मविश्वास से!
भरे रहो.. प्रेम की मोहक सुवास से!
आगे बढ़ाते रहो नव-पीढ़ी को..
करके अनुभवों की साझेदारी ..
संसार के निर्माण में ..सुविकसित भागेदारी!
और कभी ना हारो ..तुम!
सुखों के अनुमान में..और
जीवन के संग्राम में ।


कौन पिरोये मनका को

अपलक जागे निशा अधूरी, ढूँढे खोये मनका को ।
बिखरे मोती यहाँ वहाँ फिर,कौन पिरोये मनका को ॥

नयन करें बरसात अधूरी, चाँद साथ कब चल पाये?
ठिठक-ठिठक बिजली गरजे, और नभ भी आँसू छ्लकाए ॥

ओझल जबसे प्रिय पलकों से, बोध डुबोए मनका को ।
बिखरे मोती यहाँ-वहाँ फिर, कौन पिरोये मनका को ॥

किरणे नव-उल्लासित छेड़ें, मधुर तान वातायन से ।
प्रणय झाँक अभिवादन करता, पुष्पित धरा लता वन से ॥

इंद्रधनुष सपने मुखरित हैं, साँझ सॅंजोंये मनका को ।
बिखरे मोती यहाँ वहाँ फिर, कौन पिरोये मनका को ॥

प्रिय स्मृतियाँ छुपी लगी हैं, विगत आयु के घन-वट पर।
और तंरगे उछ्ल-उछ्ल कर, हलचल भरती उर-घट पर ॥

विरह भरा है नेह कलश, कुछ छ्लक भिगोए मनका को ।
बिखरे मोती यहाँ वहाँ फिर,कौन पिरोये मनका को ॥

क्यों है इतनी दीर्घ प्रतीक्षा? भय देती कटु यामिनी।
शून्य निहारे अपलक किसको, प्रेमातुर मधु दामिनी ॥

सिंधु सरीखा दुःख बह पड़ता, जो धोए मन मनका को ।
बिखरे मोती यहाँ वहाँ फिर, कौन पिरोये मनका को ॥


आज फिर बरसात ने, छेड़ी सजीली तान है

आज फिर बरसात ने, छेड़ी सजीली तान है ।
है मलय मुखरित किरण से, कुछ लजीली शान है ।

हार हो या जीत हो थकती, नहीं है बंदगी
आपसी सौहार्द से निखरी, मिली है ज़िदगी
थाम लो कमजोर सांसें, जिनकी ढलती शाम है
आज फिर …

काँपते सपनों को पूरी, दे चलो हिम्मत प्रिये
हों भले मतभेद उनसे, पर रहो सम्मत प्रिये
चल पड़ी आँधी बदलने, अब धरा की आन है
आज फिर ….

गर सँवारोगे तो बगिया, सज-सँवर खिल जाएगी।
और फिर पीढ़ी को तेरी, नव-डगर मिल जाएगी..
देश पर कर दो न्योछावर जान ये ही दान है।
आज फिर …


यह मन जरा सा’

आज चिंतन के वृहद मस्तक पर , संकोचन जरा सा ।
थक चुका विश्राम करना चाहता, यह मन जरा सा ॥

भावनाएं चली मिलने, हृदय से कुछ कर निवेदन।
पाँव धोने को हुए तत्पर, नयन-भर जल अकिंचन ॥

कुसुम कलियों से सुसज्जित, घूम लूँं मधुबन जरा सा।
थक चुका विश्राम करना चाहता, यह मन जरा सा ॥

मुदित मन अपलक निहारूँ, शाख की तितली सखे ।
रोक लूँ गर्जित घनेरे, मेघ की बिजली सखे॥

सन्निकट अनुभूति करना चाहता, यह तन जरा सा ।
थक चुका विश्राम करना चाहता, यह मन जरा सा ॥

गीत फिर प्रमुदित स्वरों से, गूँजने चहुदिशि लगे ।
प्रार्थना करने चले कुछ भाव, अधरों पर सजे ॥

प्रथम आलिंगन प्रिया से चाहता जीवन जरा सा ।
थक चुका विश्राम करना चाहता, यह मन जरा सा ॥

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रश्मि लहर
लखनऊ

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