bhadhak hota hai moh/बाधक होता है मोह-डॉ.संपूर्णानंद मिश्र
bhadhak hota hai moh: डॉ.संपूर्णानंद मिश्र की रचना बाधक होता है मोह हिंदी रचनाकार पाठको के सामने प्रस्तुत है
बाधक होता है मोह
बाधक होता है मोह लक्ष्य में
अपने को ही पहचानता है केवल
अपनी ही
जय–जयकार करवाता है
छल लेता है कांपती एवं लड़खड़ाती आवाज़ों को
थोड़ा और खुलकर कहा जाय
तो नष्ट हो जाती है
प्रज्ञा ऐसे व्यक्ति की
नहीं भेद कर पाता है
सत्य और असत्य में
पाप और पुण्य में
देशभक्ति और देशद्रोह में
न्याय और अन्याय में
रात और दिन में
सूर्य और चांद में
अंधेरे और उजाले में
नीर और क्षीर में
फंस जाता है मोही व्यक्ति
अपने ही बनाए चक्रव्यूह में
जहां से उसका निकलना असंभव हो जाता है
कह सकता हूं
खुलकर दूसरे शब्दों में
कोई खास अंतर नहीं है
मोहग्रस्तता और अंधेपन में
दोनों का पथ एक हो जाता है
मोहग्रस्तता से युक्त जब अंधा व्यक्ति बैठकर
सत्ता के मचान पर
न्याय करने लगे
तब यह समझ लेना चाहिए कि
महाभारत होना तय है
चाहे वह
परिवार हो या देश हो
क्योंकि जब मुखिया
अंधा और मोही दोनों हो जाय
तब कोई नहीं
बचा सकता है एक और महाभारत होने से
संपूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
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