Biography of asha shailee- आशा शैली का जीवन परिचय
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साहित्य जगत का एक नन्हा सा जुगनू
(biography of asha shailee)
साहित्य जगत में शनै-शनै अपनी रोशनी बिखेरती, हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, डोगरी, महासवी (हिमाचली), ओड़िया एवं उत्तराखण्डी भाषाओं पर अपनी मजबूत पकड़ का अहसास कराती आशा शैली का नाम बेशक हिमाचल से बाहर नया लगता हो, परन्तु विगत आधी शताब्दी से भी अधिक समय से साहित्य साधना-रत आशा शैली ने हिन्दी कविताएँ, ग़ज़लें, लघुकथाएँ, सटीक समीक्षाएँ, देश के विभिन्न भागों की लोककथाएँ, स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनियाँ, मौलिक कहानियाँ, उपन्यास, शोधलेख आदि लिखकर अपनी लेखनी का लोहा मनवाया है।
आशा शैली का प्रारंभिक जीवन
(Biography of asha shailee)
आशा शैली का जन्म 2 अगस्त सन् 1942 को पाकिस्तान के रावलपिण्डी के एक गाँव अस्मानखट्टड़ में (विभाजन पूर्व) हुआ था। भारत-पाकिस्तान विभाजन के कारण वे अपने माता-पिता (स्व. श्री विशेशर नाथ ढल-श्रीमती वीरांवाली ढल)के साथ उत्तराखण्ड के हल्द्वानी कस्बे (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) में आकर रहने लगीं। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा प्रा.विद्यालय बरेली रोड, हल्द्वानी में हुई और ललित महिला विद्यालय से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद प्रयाग महिला विद्यापीठ से विद्याविनोदिनी, कहानी लेखन महाविद्यालय अम्बाला छावनी से कहानी लेखन, तथा पत्रकारिता महाविद्यालय दिल्ली से पत्रकारिता का प्रशिक्षण प्राप्त किया। विवाह के पश्चात् हिमाचल प्रदेश की सुरम्य वादियों में जा बसी आशा शैली ने अपनी रचनाधर्मिता से हिमाचल के लेखन जगत में अपना विशेष स्थान बनाया तथा पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए भी निरंतर साहित्य सेवा में जुटी रहीं। वर्ष 1982 में पति की मृत्यु के पश्चात् जीवन से टूट चुकी आशा शैली के जीने का आधार उनकी एकमात्र पुत्री ही थी जिसके साथ उन्होंने अपने बिखरे जीवन को फिर से समेटा और चल पड़ी साहित्य की सरिता के साथ। हिमाचल प्रदेश में अपना एक विशिष्ट स्थान बना चुकी आशा शैली के जीवन में पुनः झंझावातों ने सर उठाया और अंतहीन पीड़ा देकर चले गए। अपनी 20 वर्षीया पुत्री आरती के आकस्मिक निधन ने मानो उनके जीवन का प्रवाह रोक दिया, पर विधि के विधान पर किसका जोर चलता है?
पुत्री की मृत्यु के पश्चात् अकेली पड़ चुकी आशा शैली की जीवन नैया डांवाडोल होने लगी। परन्तु शायद साहित्य के इस दीप को अभी और दूर तक रोशनी बिखेरनी थी इसलिए अपने एकाकी जीवन को व्यस्त रखते हुए इन्होंने अपने आप को पूर्ण रूपेण साहित्य सागर में डुबो लिया। सरकारी पुरस्कारों की दौड़ से अलग-थलग मात्र सामाजिक/साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत और सम्मानित आशा शैली का लक्ष्य मात्र साहित्य साधना करना ही है। साहित्य संसार में रची-बसी आशा शैली साहित्यिक क्षेत्र के भाई-भतीजावाद, चाटुकारिता और पिछले दरवाजे से प्रवेश करने वाले साहित्यकारों की श्रेणी में आने की बजाय अपने परिश्रम और लगन से एक ठोस साहित्यिक धरातल तैयार करने में जुटी हुई हैं।
उम्र के आखिरी पड़ाव पर इस जुझारू महिला ने कम्प्यूटर का प्रशिक्षण प्राप्त किया। सुबह से रात्रि तक अपने कम्प्यूटर पर काम करना, नए/पुराने सभी साहित्यकारों से सम्पर्क स्थापित कर उन्हें जोड़ना/बटोरना और नवोदितों को प्रतिष्ठापित करना अब इनकी दिनचर्या बन चुकी है। अपनी पुत्री की यादों को हमेशा जीवित रखने के लिए उन्होंने आरती प्रकाशन चलाकर अपनी रचनाधर्मिता को तो कायम रखा ही साथ ही इस प्रकाशन के माध्यम से उन्होंने कई प्रतिष्ठित/नवोदित लेखकों को बाँधे रखा।
आशा शैली का मानना है कि साहित्य वही है जिससे आम आदमी का हित होता हो, जो जन समस्याओं और जन भावनाओं को उकेरता हो। अपनी इस बात को रखते हुए वह बड़ी सहजता से रूसी रचनाधर्मी बरतोब्त ब्रेख्त की इस सूक्ति को बेहद सार्थक बताती हैं जो कहते हैं,
‘‘देखो तुम्हें मैं एक बात बताता हूँ जिसके सामने दुनिया की हर सच्चाई छोटी है, भूखे आदमी का सबसे बड़ा सच रोटी है।’’
हिमाचल की प्राकृतिक छटाओं के इन्द्रधनुषी रंगों में रची-बसी आशा शैली जीवन के एकाकीपन और अपनेपन के अभाव को झेलती रहीं परन्तु कब तक? आखिर उन्होंने हिमाचल छोड़ने का निश्चय किया और वर्ष 1998 में वे उत्तर प्रदेश के जनपद मुजफ्फर नगर के खतौली कस्बा में रहने लगीं। यहीं उन्होंने कम्प्यूटर का प्रशिक्षण प्राप्त किया और अपने साहित्य को नए आयाम दिए। यहाँ राष्ट्रीय स्तर के हिन्दी-उर्दू कवि सम्मेलनो/गोष्ठियों आदि का आयोजन कर साहित्य सेवा के साथ सामाजिक सद्भावना, देश प्रेम और राष्ट्रीय एकता का प्रचार-प्रसार किया।
मानवीय की दुर्बलताओं से कौन बचा है? वास्तव में यही दुर्बलताएँ मानव को मानव बनाए रखती हैं। अवसाद, विशाद, दुःख-दर्द, हँसी-खुशी, सभी कुछ तो महसूस करता है मानव मन। जीवन की इन्हीं दुर्बलताओं से न उबर पाने के कारण आशा शैली का मन खतौली से उचाट होने लगा था, जिसके चलते उन्होंने उत्तराखण्ड के जनपद ऊधमसिंह नगर के तहसील सितारगंज में अपने भाई केवल कृष्ण ढल के पास रहने का फैसला किया और 2001 में सितारगंज आ गईं तथा यहीं से अपनी साहित्यिक यात्रा के अगले पड़ाव पर बढ़ना शुरू किया। वर्ष 2007 में आपने हिन्दी साहित्य की त्रैमासिक पत्रिका शैल-सूत्र का प्रकाशन आरम्भ किया।
वर्ष 2005 में मैंने एक काव्य संकलन ‘नए स्वर’ का सम्पादन कर उसे प्रकाशन कराया। जिसमें मैंने कुछ उदीयमान और कुछ अनुभवी रचनाकारों की रचनाओं का चयन किया। उस समय मेरी नियुक्ति दिल्ली में थी। वहीं मैंने किसी पत्रिका में शैली जी की रचना पढ़ी। उस रचना के साथ शैली जी का पता भी था, मैंने तुरन्त ‘नए स्वर’ काव्य संकलन शैली जी को प्रेषित कर आगे मार्गदर्शन की प्रार्थना की। शैली जी के मातृवत स्नेह और आशीर्वाद से भरा पत्र मिला जिसे पढ़कर शैली जी से मिलने का मन हुआ। इसी बीच शैली जी ने बहु आयामी असमी-हिन्दी लेखिका बहन कुहेली भट्टाचार्य का पता दिया जो दिल्ली में रहती हैं।
बहन कुहेली भट्टाचार्य जी जब मेरे सामाजिक एवं साहित्यिक पक्ष से परिचित हुईं तो उन्होंने मेरा नाम भी आशा शैली के साथ डॉ. भीमराव अम्बेडकर उत्कृष्ठ सेवा पुरस्कार के लिए म.प्र. की चयन समिति को भेज दिया। वर्ष 2006 में उक्त पुरस्कार प्राप्त करने के लिए मध्य प्रदेश जाना हुआ तो आशा शैली जी से मिलना हुआ। सहज विश्वास ही नहीं हुआ कि इतनी ख्यातिलब्ध बहुआयामी लेखिका इतने सरल स्वभाव की हंसमुख महिला होंगी। माँ की ममता एवं कठोर शिक्षिका की तरह उनका हर गलती को सुधारने का ढंग, हमेशा उनके सानिध्य में रहने को प्रेरित करता है। वर्ष 2006 में मेरा स्थानान्तरण दिल्ली से हल्द्वानी (नैनीताल) हुआ। हल्द्वानी आने के बाद मुझे आशा शैली के और निकट होने का संयोग प्राप्त हुआ। शैल-सूत्र के प्रकाशन पर शैली जी ने मुझे शैल-सूत्र को सम्भालने की जिम्मेदारी सौंपी। इन्हीं जिम्मेदारियों का निर्वाह करते-करते मैं शैली जी के जीवन के व्यक्तिगत, साहित्यिक एवं सामाजिक पहलुओं से इतना अधिक परिचित हो चुका था कि उनके बारे में लिखे बगैर लगा कि यह एक साहित्य के एक मूक साधक को गुमनामी के अन्धेरे में मारने जैसा होगा।
आशा शैली जी की साहित्यक यात्रा
(biography of asha shailee)
शैली जी ने अपनी पहली रचना जब वे छटी कक्षा में पढ़ती थीं, तब लिखी और उनकी पहली रचना, जो एक उर्दू ग़ज़ल थी सन् 1960 में दिल्ली से निकलने वाले हिन्दी मिलाप में प्रकाशित हुई। तब से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा तथा उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू, हरियाणा, राजस्थान आदि सम्पूर्ण उत्तर भारत ही नहीं दक्षिण भारत और अण्डमान-निकोबार आदि से भी काव्य-लेखक मंचों, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि के द्वारा भी उनकी रचनाओं का प्रसारण हो चुका है। देश के हर भाग की पत्रिका में उनकी रचनाएँ देखी जा सकती हैं।
उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं,
1.काँटों का नीड़(काव्य संग्रह)
2.एक और द्रौपदी, (काव्य संग्रह)
3.सागर से पर्वत तक (ओड़िया से हिन्दी में काव्यानुवाद),
4.शजर-ए-तन्हा (उर्दू ग़ज़ल संग्रह)
5. प्रभात की उर्मियाँ (लघुकथा संग्रह)
6.गर्द के नीचे (हिमाचल के स्वतन्त्रता सेनानियों की जीवनियाँ)
7.दादी कहो कहानी (लोककथा संग्रह),
8.हिमाचल बोलता है (हिमाचल कला-संस्कृति पर लेख)
9.हमारी लोक कथाएँ भाग एक से भाग छः तक।
10. एक और द्रौपदी का बांग्ला में अनुवाद (अरु एक द्रौपदी नाम से),
11. सूरज चाचा (बाल कविता संकलन),
प्रकाशित पुस्तकेंः-
1.काँटों का नीड़ (काव्य संग्रहद्ध)
- प्रथम संस्करण 1992,
- द्वितीय 1994,
- तृतीय 1997
2. एक और द्रौपदी (काव्य संग्रह 1993)
3. सागर से पर्वत तक (ओड़िया से हिन्दी में काव्यानुवाद) प्रकाशन वर्ष (2001)
4.शजर-ए-तन्हा (उर्दू ग़ज़ल संग्रह-2001)
5.एक और द्रौपदी का बांग्ला में अनुवाद (अरु एक द्रौपदी नाम से 2001),
6.प्रभात की उर्मियाँ (लघुकथा संग्रह-2005)
7.दादी कहो कहानी (लोककथा संग्रह,)
- प्रथम संस्करण-2006
- द्वितीय संस्करण-2009
8.गर्द के नीचे (हिमाचल के स्वतन्त्रता सेनानियों की जीवनियाँ)
- प्रथम संस्करण-2007
- द्वितीय संस्करण (2014)(अमेज़न पर)
9. हमारी लोक कथाएँ, भाग एक -2007
10.हमारी लोक कथाएँ, भाग दो -2007
11.हमारी लोक कथाएँ, भाग तीन -2007
12.हमारी लोक कथाएँ, भाग चार -2007
13.हमारी लोक कथाएँ, भाग पाँच -2007
14.हमारी लोक कथाएँ, भाग छः -2007
15.हिमाचल बोलता है (हिमाचल कला-संस्कृति पर लेख-2009
16.सूरज चाचा (बाल कविता संकलन-2010)
17.पीर पर्वत (गीत संग्रह-2011)
18.आधुनिक नारी कहाँ जीती कहाँ हारी (नारी विषयक लेख-2011)
19.ढलते सूरज की उदासियाँ (कहानी संग्रह-2013)अमेज़न पर
20.छाया देवदार की (उपन्यास-2014) अमेज़न पर
21.द्वन्द्व के शिखर, (कहानी संग्रह 2016) अमेज़न पर
22. ‘हण मैं लिक्खा करनी’ (पहाड़ी कविता संग्रह) 2017
23.चीड़ के वनों में लगी आग (संस्मरण-2018) उपन्यास छाया देवदार की अमेज़न पर।
24. कोलकाता से अण्डमान तक (2019) बाल उपन्यास अमेजन
25. इस पार से उस पार (बाल उपन्यास) डायमण्ड बुक्स द्वारा स्वीकृत
26.नर्गिस मुस्कुराती है (ग़ज़ल संग्रह अमेज़न पर)
27. मैं हिमाचल हूँ (शोध लेख अमेज़न पर)
28. भविष्य प्रश्न (कविता संग्रह अमेज़न पर)
महादेवी, चित्रा मुद्गल और शिवानी जैसी साहित्यकार विभूतियों को आशा शैली ने अपना प्रेरणा स्रोत माना, अपने अत्यन्त निकट जाना है। महादेवी वर्मा से अपने अत्यन्त निकट सम्बन्धों की कल्पना में खोई आशा शैली ने अपने प्रथम कविता संग्रह ‘‘काँटों का नीड़’’ में कुछ पंक्तिया यूँ कही हैं,
‘‘मैं संतान महादेवी की/मैं पीड़ा की हूँ पहचान/नीर भरी दुख की बदली का/कुसुम कली सा मैं वरदान’’
आशा शैली की कविताओं को देखकर ऐसा लगता है जैसे उन्होंने दुनिया के हर रंग को अत्यन्त निकट से देखा, भोगा और जिया है। प्रेम, विरह, भक्ति, आक्रोश, व्यंग्य और वैराग्य कोई भी रस ऐसा नहीं जिसका परिचय शैली जी की कविता, कहानियों, ग़ज़लों आदि में न मिले। ‘एक और द्रौपदी’ में उनकी कविता ‘परिचित किन्तु उपेक्षित सत्य’ के कुछ अंश-
‘‘उगता मधुर प्रभात देख कर, रोई बहुत सलोनी रात
देख ओसकण पात-पात पर हमने पूछी मन की बात
बोली आज हुई मेरे संग, कल को फिर होगी यह घात
संध्या होगी, दिन डूबेगा, मृत्यु अवश्यम्भावी है।’’
उनके उर्दू ग़ज़ल संग्रह ‘‘शजर-ए-तन्हा’’ के अंश-
‘‘उम्र भर सींचा है जिसको मैंने खून-ए-दिल के साथ
किस लिए वह पेड़ अहले दिल हरा होता नहीं’’
या नदी किनारे का वह तन्हा पेड़ हमें
अब तो अक्सर अपने जैसा लगता है’’
या नदी हूँ हर तरफ़ बहने की राह रखती हूँ
कोई हो रास्ता उस पर निगाह रखती हूँ’’
नारी जीवन की जो झलकियाँ उनके रचना संसार का हिस्सा है वह अन्यत्र बहुत कम देखने को मिलती हैं। वे कहती हैं
‘‘मैं तो नद्दी हूँ, तबीयत है रवानी मेरी
फिर भी ख्वाहिश किसी परबत ने तो रोका होता’’
अपनी इस साहित्यिक यात्रा को अपने निजी जीवन, सामाजिक सरोकारों तथा मर्यादा विहीन राजनीति पर कटाक्ष करती रचनाओं को अपने जीवन का लक्ष्य बना चुकी आशा शैली उत्तराखण्ड की धरती से गहरा लगाव रखती हैं। माता-पिता की याद और अपने बचपन की स्मृतियाँ उन्हें दोबारा यहाँ खींच लाई हैं परन्तु हिमाचल प्रदेश में उनके जीवन के सुनहरे वर्ष और पति की यादें रची-बसी हैं। इस प्रकार इन दोनों पहाड़ी राज्यों से जुड़ी उनकी लेखनी में सचमुच पहाड़ धड़कता है। परन्तु अपनी दैनन्दिनी विसंगतियों के हाथों वर्तमान में उत्तराखण्ड के जनपद नैनीताल के लालकुआँ कस्बे में गुमनामी का जीवन व्यतीत करते हुए अपनी साहित्यिक साधना में रत हैं। कुछ उपलब्धियाँ –
सम्मानः-
- उत्तराखण्ड सरकार द्वारा (21 हज़ार की राशि सहित) सम्मानित तीलू रौतेली पुरस्कार 2016।
- पत्रकारिता द्वारा दलित गतिविधियों के लिए अ.भा. दलित साहित्य अकादमी द्वारा अम्बेदकर फैलोशिप -1992,
- साहित्य शिक्षा कला संस्कृति अकादमी परियाँवां -प्रतापगढ़ द्वारा साहित्यश्री’ 1994,
- अ.भा. दलित साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा अम्बेदकर ‘विशिष्ट सेवा पुरस्कार’ 1994,
- शिक्षा साहित्य कला विकास समिति बहराइच द्वारा ‘काव्य श्री’, कजरा इण्टरनेशनल फ़िल्मस् गोंडा द्वारा ‘कलाश्री 1996,
- काव्यधारा रामपुर द्वारा ‘सारस्वत’ उपाधि 1996,
- अखिल भारतीय गीता मेला कानपुर द्वारा ‘काव्यश्री’ के साथ रजतपदक 1996,
- बाल कल्याण परिषद द्वारा सारस्वत सम्मान 1996,
- भाषा साहित्य सम्मेलन भोपाल द्वारा ‘साहित्यश्री’ 1996,
- पानीपत अकादमी द्वारा आचार्य की उपाधि 1997,
- साहित्य कला संस्थान आरा-बिहार से साहित्य रत्नाकर की उपाधि 1998,
- युवा साहित्य मण्डल गा़ज़ियाबाद से ‘साहित्य मनीषी’ की मानद उपाधि 1998,
- साहित्य शिक्षा कला संस्कृति अकादमी परियाँवां से आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी’ सम्मान 1998,
- ‘काव्य किरीट’ खजनी गोरखपुर से 1998,
- दुर्गावती फैलोशिप’, अ.भ. लेखक मंच शाहपुर जयपुर से 1999,
- ‘डाकण’ कहानी पर दिशा साहित्य मंच पठानकोट से 1999,
- विशेष सम्मान, हब्बा खातून सम्मान ग़ज़ल लेखन के लिए टैगोर मंच रायबरेली से 2000।
- पंकस (पंजाब कला संस्कृति) अकादमी जालंधर द्वारा कविता सम्मान 2000,
- अनोखा विश्वास, इन्दौर से भाषा साहित्य रत्नाकर सम्मान 2006।
- बाल साहित्य हेतु अभिव्यंजना सम्मान फर्रुखाबाद से 2006,
- वाग्विदाम्बरा सम्मान हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से 2006,
- हिन्दी भाषा भूषण सम्मान श्रीनाथ द्वारा राजस्थान 2006,
- बाल साहित्यश्री खटीमा उत्तरांचल 2006,
- हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा महादेवी वर्मा सम्मान, 2007 में।
- हिन्दी भाषा सम्मेलन पटियाला द्वारा हज़ारी प्रसाद द्विवेदी सम्मान 2008,
- साहित्य मण्डल श्रीनाथद्वारा (राज) सम्पादक रत्न 2009,
- दादी कहो कहानी पुस्तक पर पं. हरिप्रसाद पाठक सम्मान मथुरा,
- नारद सम्मान-हल्द्वानी जिला नैनीताल द्वारा 2010,
- स्वतंत्रता सेनानी दादा श्याम बिहारी चौबे स्मृति सम्मान(भोपाल)
- म.प्रदेश.तुलसी साहित्य अकादमी द्वारा 2010
- विक्रमशिला हिन्दीविद्यापीठ द्वारा भारतीय भाषा रत्न 2011,
- उत्तराखण्ड भाषा संस्थान द्वारा सम्मान 2011,
- अखिल भारतीय पत्रकारिता संगठन पानीपत द्वारा पं. युगल किशोर शुकुल पत्रकारिता सम्मान 2012,
- (हल्द्वानी) स्व. भगवती देवी प्रजापति हास्य-रत्न सम्मान 2012,
- साहित्य सरिता, म. प्र. पत्रलेखक मंच बेतूल।
- भारतेंदु हरिश्चन्द्र समिति कोटा से साहित्यश्री सम्मान -2013,
- महाराणा प्रताप संग्रहालय हल्दीघाटी से साहित्य रत्न सम्मान 2013,
- विक्रमशिला विद्यापीठ द्वारा राष्ट्रगौरव सम्मान 2013,
- आशा शैली के काव्य का अनुशीलन(लघुशोध, शोधार्थी मंजु शर्मा, निदेशक डॉ. प्रभा पंत-2014),
- उत्तराखण्ड बाल कल्याण साहित्य संस्थान, खटीमा (जिल ऊधमसिंह नगर) द्वारा ‘सम्पादकरत्न’ 2014,
- हिमाक्षरा (वर्धा) द्वारा उपन्यास ‘छाया देवदार की’ के लिए‘सृजन सम्मान अलंकरण’ 2014,
- अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन भोपाल से सुमन चतुर्वेदी सम्मान,
- उपन्यास ‘छाया देवदार की’ के लिए 2015,
- हिमाचल गौरव सम्मान बुशहर हलचल एवं बेटियाँ फाउण्डेशन रामपुर बुशहर हिमाचल प्रदेश द्वारा 2015,
- तीलू रौतेली (उत्तराखण्ड राज्य पुरस्कार-2016),
- महिला महाशक्ति सम्मान,
- नया उजाला कल्याण समिति हल्द्वानी द्वारा 2016,
- ग्लोबल लिटरेरी सम्मान,
- मरवाहा फिल्मस् नोयडा (दिल्ली 2016),
- साहित्य महारथी सम्मान अ.भा.आध्यात्मिक संस्था काव्यधारा रामपुर उ.प्र. 2017 द्वारा डॉ. परमार पुरस्कार
- सिरमौर कला संगम द्वारा ;2017।
- देहदानी सम्मान वैश्य महिला सम्मिति हल्द्वानी एवं नगर पंचायत लालकुआँ-2017।
- कान्ता शर्मा राज्य स्तरीय सम्मान (हिमाचल प्रदेश-2017) अ. भा. सृजन सरिता परिषद्हिमाचल प्रदेश स्वयंसिद्धा सम्मान,
- बूईंग वीमन फलक देहरादून द्वारा 2018,
- अमर भारती दिल्ली से सरस्वती स्मृति सम्मान 20018,
- प्रबुद्ध नागरिक ऐसोसिएशन ग़ज़ियाबाद द्वारा सम्मान 2019,
- लॉयन्स क्लब नैनीताल द्वारा आर्यसम्मान 2019,
- विश्व हिन्दी रचनाकार मंच द्वारा शहीद स्मृति सम्मान 2019।
- पंकस अकादमी जालन्धर द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय आधी दुनिया अवार्ड 2019।
- शंखनाद मीडिया विशिष्ट सम्मान 2020,
- कालिंजर सृजन सम्मान -2020,
- कलमवीर सम्मान 2020।
सम्प्रतिः-आरती प्रकाशन की गतिविधियों में संलग्न,
प्रधान सम्पादक, हिन्दी पत्रिका शैलसूत्र (त्रै.)
वर्तमान पताः-साहित्य सदन, इंदिरा नगर-2, पो. ऑ. लालकुआँ, जिला नैनीताल
(उत्तराखण्ड0 262402
मो.9456717150, 07078394060, 7055336168,
वस्तुतः आशा शैली इन दोनों राज्यों के लिए आज हिन्दी साहित्य का जुगनू नहीं एक चमकता सितारा हैं, जिन्हें उचित सम्मान मिलना ही चाहिए, अन्यथा हमेशा की तरह किसी शायर की यह पंक्तियाँ सच साबित न हो जाएँ
‘‘कि मैंने अर्थ की दहलीज पर
एक कवि को दम तोड़ते हुए देखा है।’’
आनन्द गोपाल सिंह बिष्ट
संजय नगर-2,
बिन्दुखत्ता, पो. लालकुआँ (नैनीताल) -262402
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