kavita khilaaf hai jhooth-ख़िलाफ़ है झूठ/ सम्पूर्णानंद मिश्र

kavita khilaaf hai jhooth

ख़िलाफ़ है झूठ


फल है

तुम्हारी निरंतर साधना
का

मिला है
जिस वजह से

नाम तुम्हें
यह सच का

घबराते हैं तुम्हारी
प्रखरता से

झूठ के
अनीक भी

नहीं निमज्जित
हो सकते हैं

ये तुम्हारी
अर्चियों में

इसलिए

 ख़िलाफ़
है

 झूठ
मुखर होकर

पूरी प्रतिबद्धता
से तुम्हारे

चाहता है रौंदना
तुम्हें

मुट्ठी भर बिके
रोशनियों के बूते  

जलने के
लिए

अनवरत तेल पिया
होगा

 जिसके
मुंह ने

तुम वही
तो हो

लेकिन नहीं

जल सकते
झूठ के दीपक

 
छद्म उजाले आज

 सारथी
हो झूठ के
तुम

 कर
रहे थे

दावा कल
तक कि

खड़े हो
तुम साथ सच
के

दे रहे
थे दुहाई मित्रता
की

 आने
लगी है

लोभ की
दुर्गंध

तुम्हारी देह से

नहीं हो
सकते

मित्र तुम किसी
के

मित्रता की गढ़ी
है

 परिभाषा
अगर किसी ने

तो वह
केवल द्वापर में

कृष्ण और कर्ण
के द्वारा

उड़ने लगे

 पंख
लोभ के जब

नहीं हो
सकती है

मित्रता की आयु
लंबी

  उखड़
जाता है

 खूंटा
मित्रता का

 विश्वास
का

अनैतिकता का

 झूठ
का

फरेब का

क्योंकि झूठ

 सच
के गर्भ में

नहीं रह
सकता है

बहुत दिनों
तक ज़िंदा

ख़िलाफ़ है आज
झूठ

मुखर होकर
सच के

kavita -khilaaf- hai- jhooth

 

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