Cheekh hindi kavita-डॉ. सम्पूर्णानंद मिश्र

 Cheekh hindi kavita

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चीख


महाभारत में एक
द्रौपदी रो रही थी
      जब वह
अपनी अस्मिता खो रही थी
 पांडव जगकर भी सो रहे थे ‌
लाचार इतने कि सारे दृश्य
  उनके सामने ही घट रहे थे
  आज चौराहों- चौराहों पर
     द्रौपदियां चीख रही हैं
    बहशी नर- भेड़ियों की
फ़ौज खुल्लमखुल्ला घूम रही हैं
अपनी अस्मिता को बचाने
के लिए बेचारी
    निरीह‌- सी दिख रही हैं
     प्रशासन बहरा
    और सिस्टम लंगड़ा
     सा हो गया है
   दु: शासन का शरीर
   चुप्पी, लाचारी का
    रक्त पीकर बहुत तगड़ा
         हो गया है
तथाकथित चांद के लिए
यह सब महज़ एक खेल है
रोज़ पटरी पर दौड़ती हुई रेल है
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ
सुर्खियों में रहने के लिए
कहानियां लिख रहा है
 टी०आर०पी० बढ़ाने के लिए
   नया मुहावरा गढ़ रहा है
    मीना,रिया, शीला
की मासूमियत का तार तार
    हो जाना महज़
उनके लिए एक आम घटना है
क्योंकि इन तीनों में
उनका कोई नहीं अपना है
साहब ! फ़र्क तो तब पड़ता
जब  तथाकथित
चांद के मुख पर भी
कोई भेड़िया कालिख पोतता
 और वह अपनों की कराह
    महसूस करता
तब मासूमियत की
 तार-तार हो रही चीख को भी
   अपने इन बहरे कानों से
       जरूर सुनता !
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर

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