ख़तरा भीतर से है/डॉ सम्पूर्णानन्द मिश्र
ख़तरा भीतर से है
ख़तरा भीतर से है
बाहर से नहीं
चाहे वैचारिक हो
या सामाजिक
बध किया है हमेशा
हमारी शक्तियों का
आंतरिक दुर्बलताओं ने
नहीं बोने देना चाहिए
बारूदी विचारधाराओं के बीजों को
क्योंकि
अंकुरण से फ़सल
तक की यात्रा में
दफ़न हो जाती है
निर्दोष जनता की भावनाएं।
वर्ग विशेष तो दिखता है
कंगूरे पर बैठा हुआ
वैसे
अनेकानेक विचारधाराएं हैं
इस देश में
जहां विचार नहीं हैं
केवल निरर्थक धाराएं हैं
और जब धाराओं के प्रसव की जिम्मेदारी अंधा धृतराष्ट्र ले ले
तो राष्ट्र के गर्भ से
डाह और उपद्रव ही जन्म लेगा
क्योंकि
एक सार्थक विचारों का बीज
तो धरती के गर्भ से
शांति और सौहार्द के अंखुएं ही फोड़ता है
डॉ सम्पूर्णानन्द मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874
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