Chhand Bhujangaprayaat/ बाबा कल्पनेश

Chhand Bhujangaprayaat

छंद-भुजंगप्रयात

करो मातु दाया


न जागे जगाए न बोले बुलाए।
नहीं जीव जैसा कभी दीख पाए।।
हिलाओ-डुलाओ कभी भी न डोले।
पड़ी लाश जैसा नहीं आँख खोले।।

बड़ा आलसी है जमाना जगाए।
नहीं जागता है बड़ी नींद आए।।
करो यत्न कोई नहीं जागना है।
बड़ी नींद प्यारी नहीं त्यागना है।।

लगे श्रेष्ठ जो भी करो आप भाई।
इसे तो लगे है भली नींद आई।।
न कोई कभी भी कहे जागने को।
न शय्या मिली जो कहे त्यागने को।।

चढ़ा सूर्य काँधे चढ़े शीश धाए।
इसे नींद प्यारी सदा ही सताए।।
नहीं भूँख प्यारी न सम्मान प्यारा।
इसे तो भली है यही नींद कारा।।

नहीं ये जगाए कभी भी जगेगा।
नहीं ये कभी भी स्वयं को भजेगा।।
बड़ा तामसी है जगाए न जागे।
न आगे न पीछे कभी भी न भागे।।

भले आग लागे न आहें भरेगा।
डराए डरे ना कभी ना मरेगा।।
सदा पूर्वजों की कमाई चरेगा।
सभी ठाँव ही गंदगी ये धरेगा।।

अरी मातु मेरी जगाओ इसे तू।
किसी भी किनारे लगाओ इसे तू।।
भरे आँख पानी करे प्रार्थना है।
यही काव्य से ये करे अर्चना है।।

कहीं हो गयी गल्तियां तो क्षमा हो।
नहीं लाल चाहे अमा ही अमा हो।।
नहीं सामने हो डराती कुछाया।
करो मातु दाया करो मातु दाया।।

लिखे पूर्वजों के पढें गीत बच्चे।
बनें देश के ये सदा मीत सच्चे।।
यही माँग माता करो पूर्ण मेरी।
चली दौड़ आओ लगाओ न देरी।।

न देरी न देरी न देरी करो री।
हिए लाल के पूर्णता को भरो री।।
लिखी अर्चना को करो पूर्ण माता।
तुम्ही जन्म दाता तुम्ही हो सुदाता।।

Chhand- Bhujangaprayaat
बाबा कल्पनेश

आपको Chhand Bhujangaprayaat/ बाबा कल्पनेश  की स्वरचित  रचना   कैसी  लगी  अपने  सुझाव  कमेंट  बॉक्स में  अवश्य  बताएं। 
अन्य  रचना  पढ़े :

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *