छवि निहारूँ पावनी / बाबा कल्पनेश
छवि निहारूँ पावनी
छवि निहारूँ पावनी
प्रभु आप आएँ इस हृदय में,छवि निहारूँ पावनी।
सिय मातु संग में लखन दिनकर,हो विभा मन भावनी।।
उर घन तिमिर डेरा हटे प्रभु,अब कृपा ऐसी करें।
आलोक मय आसन बने यह,छवि सुघर अपनी धरें।।
जो छवि विलोके रामबोला,शान से जीवन कटा।
सिय राम मय देखे सकल जग,उर तिमिर बादल फटा।।
आकाश यह धरती सजी नित,प्रति लखे छवि सावनी।
प्रभु आप आएँ इस हृदय में,छवि निहारूँ पावनी।।
अब पीर उर है असह्य होती,स्वार्थ की आँधी लखे।
अति तिक्तता वेधे हृदय को,लालची रसना चखे।।
क्या झूँठ है क्या साँच जग में,मति नहीं कुछ बोलती।
सद्गुरु लखाए रूप चिन्मय,दृग पटल यह खोलती।।
मुनिवृंद देखे छवि मनोहर,सुख अधिक जो लावणी।
प्रभु आप आएँ इस हृदय में,छवि निहारूँ पावनी।।
हनुमत निकेतन आइए अब,अब ज्वार प्रेमिल आ सके।
ज्वर ताप जग से जो मिला यह,मन सकल वह पा थके।।
गणिका-अजामिल अघ कटे बस,नाम केवल आप के।
वह रूप अपना हिय उतारें सुन,भरे आलाप के।।
तव नाम महिमा गा निरंतर,छवि लखूँ नित बावनी।
प्रभु आप आएँ इस हृदय में,छवि निहारूँ पावनी।।
तव नाम अमृत शिव हृदय में,कंठ अपने विष धरें।
त्रय ताप नाशक शिव बने नित,प्राणियों के दुख हरें।।
हे नाथ करुणा कर करे आ,जाइए शायक धरे।
अब रिक्तता हो पूर्ण प्रभुवर,गाइए शिव-शिव हरे।।
इस शीश पर राजे सदा ही,वरद करतल छावनी।
प्रभु आप आएँ इस हृदय में,छवि निहारूँ पावनी।।
ज्यों संत तुलसी-तुका-नानक,गान करके तर गए।
रच छंद सुखदायक सभी कल,काव्य में शुभ भर गए।।
मम हृदय करुणा सिंधु आएँ,आप निज मुस्कान ले।
यह दीन है निज नाम दें बस,तनिक सा पहचान ले।।
कविता बने कविता बने अति,जगत छाँव सुहावनी।
प्रभु आप आएँ इस हृदय में,छवि निहारूँ पावनी।।
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