Corona Par Gazal- ग़ज़ल कोरोना पर

Corona Par Gazal- ग़ज़ल कोरोना पर

क्रूरकाल है साथियों


हर तरफ़ फैला कोरोना, क्रूरकाल है साथियों,
सबको पड़ गया है रोना, क्रूरकाल है साथियों।

सही सलामत आदमी भी, छोड़ दुनिया चला गया,
जिन्दगी बन गई खिलौना, क्रूरकाल है साथियों।

जिधर भी देखो लगी हुई, रोगियों की कतार है,
सरकार से यह पूछो ना, क्रूरकाल है साथियों।

अमीर, गरीब का फ़र्क नहीं, सब उसके शिकार हुए,
बचाने की फ़िकर करो ना, क्रूरकाल है साथियों।

ऑक्सीजन कम हो रही, भ्र्ष्टाचार अब बढ़ गया,
उनका बना सपन सलौना, क्रूरकाल है साथियों।

ऑटो रिक्शा, एम्बुलेंस और, सभी दवाई विक्रेता,
सबका नारा है लूटो ना, क्रूरकाल है साथियों।

कोरोना का भय विचित्र-सा, न अपने भी पास आएं,
इस तरह की मौत मरो ना, क्रूरकाल है साथियों।

जो मरे वो, लौट न आएं, खुद का सोचिए बचाव,
प्रथम अपनों की सोचो ना, क्रूरकाल है साथियों।


दहशत में है


चारों तरफ़ कोरोना से, जिन्दगी दहशत में है,
छोटा या बड़ा हर कोई, आदमी दहशत में है।

इलाज की उम्मीद से जब, हस्पताल जाए अगर,
देखकर वहाँ का नज़ारा, आजभी दहशत में है।

कौन बच पाया यहाँ पर, कोरोना के कहर से,
रामू, सुखविंदर, कमल जैन, आज़मी दहशत में है।

कुछ लोग हस्पताल गए जो, ठीक हो घर पहुँच गए,
लेकिन बेहतर होने के, बादभी दहशत में है।

जो कहे हमसे यह आकर, डर उसको लगता नहीं,
उसके बारे में समझिये, लाज़मी दहशत में है।

कोरोना बीमारी बड़ी, डरना उससे चाहिए,
क्योंकि इस बीमारी से यहाँ, हर खुशी दहशत में है।


हम तो ऐसे तक़दीर के मारे हैं


हम तो ऐसे तक़दीर के मारे हैं,
गैरों से नहीं, अपनों से हारे हैं।

जिनको हमने लादा था लबादों से,
कपड़े हमारे वही तो उतारे हैं।

जो देते आतंकवाद को बढ़ावा,
ऐसे लोग न हमारे न तुम्हारे हैं।

सभी बचके रहिए उन शैतानों से,
जो देश को ही कर रहे किनारे हैं।

बताइए उन जयचन्दों का क्या करें?
जो रक़ीबों के बन रहे सहारे हैं।

सरकार सोचे न सोचे, आप सोचें,
क्योंकि नेता अब हुए बेचारे हैं।

कुछ तो गैरत होनी चाहिए दिल में,
बोलो कुछ, बोलो, मौन क्यों धारे हैं?


corona-par-gazal
पवन शर्मा परमार्थी
कवि-लेखक
दिल्ली,भारत।

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