प्रिय भाषा हिंदी / श्रवण कुमार पांडेय पथिक

प्रिय भाषा हिंदी / श्रवण कुमार पांडेय पथिक

प्रिय भाषा हिंदी

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भाग्यशाली हूँ मैं जब जन्मा तो प्रथम,
बधाई मिली मेरे पूज्य बाबा जी को,
दादा आपके नाती पैदा हुआ है,
मृदुल शब्द बोल थे हिंदी के,
जन्मते ही ज्योंहि रोया तो
दुलारे बोल थे हिंदी के,

ज्यों ज्यों स्नस्नेह घर मे पलता गया,
सबकी इच्छानुरूप ही ढलता गया,
जब किसी को प्रणाम किया तो ,
सुना,आशीष के बोल हिंदी के,
बेटा सदैव स्वस्थ खुश रहो,
आशीष बोल थे हिंदी के,

पूर्वजों का आशीष भाग्यानुरूप रहा,
शिक्षित होकर जीविकोपार्जन में,
शिक्षक हो,शिक्षक कर्म हिंदी में,
जीविका साधन थी मातृभाषा,
सतत संवाद मातृभाषा रही,
प्रतिक्षण जिया हिंदी में,

सौभाग्य शिविका अभी भी सुदृढ है,
ईर्ष्या के मेरु ढहाता ही रहता हूँ
स्पष्ट बोल बोलकर हिंदी में,
अब तो समय भी कम है,
जी रहा स्वाभिमान से,
नित्यजीवन हिंदी में,

यह संसार नितांत नश्वर है मालूम है,
एकदिन आना ही आना जीवन में,
इस तन से ईशअंश विलग होगा,
उठेगा रुदन का ज्वार हिंदी में,
तन से ईशअंश विलग होगा,
गूंज उठेगा ,रामनाम सत्य,
मेरी प्रिय भाषा हिंदी में,

लोकव्यवस्था समझती जनभावना,
समेटकर साहस ,सामर्थ्य अपनी,
कर देती घोषणा राष्ट्र हितार्थ,
आज से राष्ट्रभाषा हिन्दी है
जय हिंदी ,जय हिंदुस्तान
धन्यवाद देता हिंदी में,

हिंदी को देखूं मैं ,
भव्य भावना पूरित हो,
भारती की दिव्यभाल विन्दी में,
जय सृजन,जय सुजन ,उद्घोष मेरा,
न जाने कब से लिखता रहा हूँ हिंदी में,
आशावादी हूँ,आएगा कोई नरपुंगव,
कर देगा घनगर्जना कि आज से,
देश का समग्र राजकाज होगा,
हिंदी ही अब राष्ट्रभाषा होगी ,
सच कहता हूँ शपथ युक्त,
खुशी से चीख पढूंगा
प्रिय भाषा हिंदी में,

– श्रवण कुमार पांडेय पथिक


२ 

यह हिंदुस्तान है,इस देश में लोग देते भाषा से अधिक महत्व कुर्सी को,
लल्लूओं का लोकतंत्र है, दम नही किसी में बना सके राष्ट्रभाषा हिन्दी को,

हिन्द में संकल्पहीन राजपुरुषों के चलते अंग्रेजी समक्ष हिंदी हुई विवश,
मुबारक सभी बतफडूस हिंदी के हवलदारों को हिंग्लिश हिंदी दिवस,

हो रहीं अखबारी बातें हिंदी की आवो कर लें, टुकड़े टुकड़े हिंदी की बात,
साल भर बाद आएगा हिंदी पखवाड़ा पितृ पक्ष की तरह आज के बाद,

श्रवण कुमार पांडेय, पथिक


३ 

आजीवन जीत कर सदा हारा हूँ,अपनों से युद्ध में,
कलम से जुड़कर स्वयं को मानता सतत समृद्ध मैं,
किंतु ,फिर भी अकेलापन निरन्तर कचोटता रहता,
मन लौट लौटकर,अतीत की धूल में लोटता रहता,
कभी ऊंचे कभी खाले में सदा चली अक्षत जिंदगी,
कभी बाल रवि,कभी मध्याह्न सूर्यवत तपी जिंदगी,
सुख की खोज में आदतन पर्यटन किया स्वदेश का
सुखी न कोई,कई बार विवेचन किया परिवेश का
क्या मिला,क्या खोया समय कटता इसी गणित में,
गर्व इस बात ,कभी रत न हुआ किसी के अहित में,
देह के होते हुये भी कभी,कभी ,विदेह हो जाता हूँ,
शांत अकेलेपन में जागते जागते रोज सो जाता हूँ,

–  श्रवण कुमार पांडेय, पथिक


४ 

कृपालु माँ वीणापाणी अपने सभी बेटों पर,
कृपा निहोर वारती,
सबके सुकंठ से समवेत निसृत होता रहता,
जय माँ भारती,

ध्येय समवेत एकमात्र समाज सुपथ गहे,
हम एक ही धरती के बेटे हैं यह बोध रहे,
स्वराष्ट्र भक्ति सबके मानस में जीवंत रहे,
गुंजित करें कण्ठ जय भारत जय जय हे,
आईये संवारें भाषा पथ,सतत उन्नत मन,
जय ,मातु भारती,जय सृजन,जय सुजन,

–  श्रवण कुमार पांडेय, पथिक

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