harigeetika chhand/हरिगीतिका छंद-बाबा कल्पनेश
हरिगीतिका छंद
विधान-
2212 2212 2,212 2212
पीपल
हो साधना सब सफल जग की,आप पीपल तरु गहें।
हैं देवता जितने सभी वे,एक इस आश्रय रहें।।
तरु डाल इसके पात जितने,देवता उतने कहें।
जो चाहते हैं आप सब वह,एक इसके तरु लहें।।
यदि रोग हों संसार के वे,आ यहाँ सब नष्ट हों।
वे धूल में मिल जाँय सब जो,प्राप्त जीवन कष्ट हों।।
आराधना यदि आप कर लें,एक पीपल वृक्ष की।
तब प्राप्त निश्चय वह करें जो,प्राप्य हो नित दक्ष की।।
हो प्रेत की बाधा कहीं या,रोग दैहिक मान लें।
शनि-राहु की या शाँति चाहें, आप हठ बस ठान लें।।
पीपल रहें जो देवता नित,शरण उनकी आप लें।
कह आप बस यह शरण आया,जीव के हर पाप लें।।
नित प्राण करता पल्लवित यह,एक तरु ऐसा सखे।
मत काटना इसको कभी यह,जीव जीवन को रखे।।
जो प्राणमय है वायु जानो,श्रेष्ठ तरु यह दे रहा।
जीवन धरा का जान लें यह,सहज ही है खे रहा।।
भारत सदा से पूजता है,भाव श्रद्धा जानिए।
साक्षात ही है हरि स्वयं यह,आप इसको मानिए।।
इससा न कोई तरु धरा पर,आप यह संज्ञान लें।
यदि चाहते कुछ और पाना,बैठ तरु, कर ध्यान लें।।
प्रतिपल प्रकम्पित पात इसका,मनस सम हम पा रहे।
सब साध्य-साधन सहज कर दे,शास्त्र कवि जन गा रहे।।
यह देव तरु है जान लें नित,वेद मुखरित कर रहे।
हर संत-साधक गान कर यह,ज्ञान सुंदर भर रहे।।
हर जीव सम्बल पा रहे नित,खग कुलों का गान है।
भूतल प्रदूषण नष्ट करता,स्वच्छ हरि का दान है।।
इसके तले करके तपस्या, बुद्ध ने निज सिद्धि ली।।
जो जागतिक जन हैं जगत के, जागरण कर वृद्धि ली।
ओ मित्र मेरे आप सब यह,रोप कर रक्षण करें।
मत काट कर इसको कभी भी,श्रेष्ठ तरु भक्षण करें।।
कर जोड़ कर कवि कह रहा शुभ, वेद का यह ज्ञान है।
लिख लीजिए उर पृष्ठ अपने,जीव जीवन मान है।।
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