lyricist-dr-rasik-kishore-singh-neeraj-songs-collection

lyricist dr rasik kishore singh neeraj song collection

lyricist dr rasik kishore singh neeraj song collection

१. माली को आगमन नहीं भाया 


कलियों का मधुरस लेने, उपवन में मधुकर आया।

पर माली को शायद यह आगमन नहीं है भाया । ।

कलियों के मुख पर छाई

चिर वांछित स्मित रेखा

मधुदान प्रणय सौरभ का

करने को   आतुर    देखा।

आह्लादित मधुपरियों का है रोम -रोम हर्षाया ।

पर माली को शायद यह आगमन नहीं है भाया । ।

इस जग में दो ह्रदयों   का

कब मधुर मिलन हो पाया

दीपक   की   लौ के   नीचे

पलती   है   काली   छाया ।

इस सतत विश्व के क्रम में ज्यों जन्म मरण की माया ।

पर   माली   को  शायद  यह  आगमन   नहीं   है  भाया । ।

प्रातः की स्वर्णिम आभा

तम आकर  दूर   हटाता

संयोग क्षणों में भी  तो

रहता वियोग से नाता ।

सुख दुख की सीमाओं से कब कौन   मुक्त    रह    पाया ।

पर   माली   को  शायद  यह  आगमन   नहीं   है  भाया । ।

हर हँसी  दुखों से   बोझिल

हर ख़ुशी व्यथा की गति है

हर    गत के  आयामों   में

नव आगत की सम्मति है।

यह चिर नूतन गठबन्धन खण्डित न कभी  हो   पाया ।

पर   माली   को  शायद  यह  आगमन   नहीं   है  भाया । ।

तम में प्रकाश का दीपक

स्नेह सुमन खिल आया

शलभों ने आहुति देकर

अपना वर्चस्व  गँवाया ।

पर  जाने   क्यों     रह-रहकर      झंझा ने     दूर    हटाया ।

पर   माली   को  शायद  यह  आगमन   नहीं   है  भाया । ।


२.   याद आयेंगे कभी 


याद  आये हैं अभी पर भूल जायेंगे सभी

भूलते हैं  हम अभी जो याद आयेंगे कभी।

 

सार  यह     संसार     का

प्रकृति  का  वरदान    है

कुछ अरुचिकर बोल लगते

रागमय   स्वर   तार    हैं ।

 

दिल मिले जब दिल में कोई प्यार होता सच तभी

याद   आये   हैं   अभी   पर,    भूल      जायेंगे   सभी ।

 

सामने मेरे  खड़े     कुछ

स्नेह खो दिखते नहीं हैं

जा चुके कुछ दूर लेकिन

नयन से ओझल नहीं हैं ।

 

कौन  पथ का पथिक जो खोजे नहीं मंज़िल कभी

याद आये     हैं  अभी पर ,     भूल    जायेंगे    सभी ।

 

था  मिला क्षण प्यार मुझको

पर मिली   पीड़ा      निरन्तर

प्यार मिलता यदि कभी तो

विरह का बहता    समुन्दर ।

 

इतिहास  ‘नीरज’  ही  रहा शेष नाटक हैं सभी

याद आये हैं अभी पर, भूल    जायेंगे    सभी ।


३.अर्न्तमन की सारी बातें 


मन कहता है तुमसे, अर्न्तमन की सारी बातें कह दूँ ।

 

क्या कह दूँ  क्या नहीं कहूँ    मैं

कुछ भी नहीं  समझ   पाता  हूँ

कह पाने   की     सीमा   छूकर

बार-बार  वापस   आता     हूँ ।

 

यह भी  सम्भव है कि बिन   कहे, अन्तस की  परिभाषा कह दूँ ।

मन कहता है तुमसे , अर्न्तमन की   सारी   बातें   कह    दूँ । ।

 

अधरों तक आते  जाते ये

शब्द अटपटे  रुक जाते हैं

होते – होते मुखर, मौन हो

वे चुपचाप ठहर  जाते   हैं ।

 

आधी कही बात में ही मैं, पूर्ण   समर्पित     भाषा    भर    दूँ ।

मन कहता है तुमसे, अर्न्तमन की   सारी   बातें   कह    दूँ । ।

 

मौन-मौन   आँसू    की   धारा

ही कर दे सब व्यक्त व्यथायें

अपनी    नीरवता में   कह   दे

अन्तर की     बिखरी    पीड़ायें ।

 

सूने  से   रीते    जीवन    की     ‘नीरज’ सारी    गाथा कह    दूँ ।

मन कहता है तुमसे, अर्न्तमन की   सारी   बातें   कह    दूँ । ।


४.मीठा जहर  यहाँ  देते हैं


सहज प्रेम से बातें करते, मीठा ज़हर यहाँ देते हैं ।

 

शान्ति  सादगी  मात्र  दिखावा

कर्म   क्रान्ति  का  वह  करते  हैं 

मन अपना मत उनको दो  वह

जो    कहते  उल्टा  करते   हैं।

 

शासन  अनुशासन   अब  बदला

वातावरण   गर्व     का     छाया

अभिलाषा       पूरी    करने  में

जनता   को  गुमराह  कराया।

 

शब्द स्त्रोत तो बहुत सरस पर, क्रिया भिन्न करते रहते हैं

सहज     प्रेम   से    बातें   करते, मीठा  ज़हर  यहाँ  देते    हैं।

 

सन्दर्भो का एक हाशिया

एकलौता बस प्रश्न यहाँ है

शब्द एक स्वर में मिल करके

अगड़ित स्वर उत्तर देता है।

 

अन्तरमन  की  सच्चाई   तो

कब किसको अच्छी लगती है

बात बनी न रुकी अन्त में

सत्य बात तब खुल जाती है।

 

संकेतों के चिन्ह देखकर, द्वन्द्व अधिक ही तब होते हैं

सहज   प्रेम   से  बातें   करते, मीठा  ज़हर   यहाँ   देते   हैं ।

 

यदि  भविष्य  विधि  भी  जाने  दो

अनजाना   कुछ   भी   ना    होता

न सुख समय निकल ही पाता

मनुज सृष्टि स्थिर कर लेता।

 

भावों की धारा बहती है

संवेगों की अधिकाई में

अन्तरमन को कैसे समझें

पैठ ह्रदय की गहराई में ।

 

‘नीरज’ को मधु के प्याले में, नित्य गरल भरकर देते हैं ।

सहज   प्रेम   से   बातें   करते, मीठा   ज़हर यहाँ  देते हैं। ।


५. मीत छूटेगा 


    मीत छूटेगा किसी दिन प्यार का

गीत  गायेगा  ह्रदय  उस  पार  का।

 

तप्त मन की घाटियों से

सहज सुधि की धार निर्मल

मौन मन्द प्रवाहिनी बह 

हो रही निशदिन अचंचल

 

शमन होगा एक दिन अभिसार का

गीत  गायेगा  हृदय  उस  पार  का।

 

अभिसप्त मन झंकृत करेगा

स्वर    सरस   साकार होंगे

स्वप्न-जागृत  एक  जैसे

रूप   के  आकार   होंगे।

 

किन्तु पायेगा न मिल स्वर तार का

गीत गायेगा हृदय उस पार का।

 

हरीतमा  चूनर पहनकर

सावनी सुन्दर सुरभि ले

नृत्य करती फिर रही है

चरण में उन्माद गति ले।

कंठ में देकर समर्पण  हार का

गीत गायेगा हृदय उस पार का।

 

दिग्भ्रमित सी हो घटायें

किस क्षितिज की ओर जातीं

और बोझिल अन्त में हो

बूँद बनकर बिखर जाती

 

खिलेगा, ‘नीरज’ नयी मनुहार का

गीत गायेगा हृदय उस पार का।

 


६.कुम्भ 


ऐसा दुर्लभ इस जीवन में, क्या हम कुम्भ नहा पायेंगे।

अपने सारे पतित कर्म को क्या संगम में धो पायेंगे।

 

आये  जो भी शरण तुम्हारी

कल्मष धोती जन्म -जन्म का

पतित पावनी हे माँ गंगे

हित करती रहती है सबका।

 

सहज भाव से अपनी लेती, ऐसा प्यार कहाँ पायेंगे

अपने सारे पतित कर्म को, क्या संगम में धो पायेंगे ।

 

सप्त तलों में नीर प्रवाहित

पर पावन तेरा ही जल है

कलुष मिटा देता तन मन का

त्रिवेणी का शुचि संबल है।

 

जटाशंकरी तेरी महिमा, क्या जीवन में गा पायेंगे ।

अपने सारे पतित कर्म को क्या संगम में धो पायेंगे ।

तत्व तुम्हारा बनकर जल का

पंच तत्व काया  संग होता

नभ, भूतल,मारुत , अग्नी में

कर सहवास प्राण सँग सोता ।

पीकर संगम का जल ‘नीरज’, जमघट से हम हट जायेंगे

अपने सारे पतित कर्म को  क्या  संगम    में    धो    पायेंगे ।


७.झूठे को सच कह रहे हैं 


गुनहगार झूठे को सच कह रहे है।

 

जलाया जिन्होंने चिरागे-मुहब्बत

वही अब शमा को बुझा क्यों रहे हैं

गुनहग़ार झूठे को सच कह रहे   हैं ।

 

थे कल तक प्रशंसक प्रगति गीत के जो

खता क्या हुई जो स्वयं जल रहे हैं

गुनहग़ार झूठे को सच कह रहे   हैं ।

 

सदा अब तक अपनत्व दिखाया जिन्होंने

वही खुद अब क्यों बेरुख हुये जा रहे हैं

गुनहग़ार झूठे को सच कह रहे   हैं ।


८.प्रेम 


प्रेम ही वन्दना प्रेम शाश्वत नमन 

प्रेम उर अर्चना प्रेम क्षद्धा सुमन ।

 

रूप अपनत्व है रूप अनजान भी 

स्नेह पूजार्चना सिद्धि भगवान भी ।

 

प्रेम   में  है विजय प्रेम   में  हार   है 

स्नेह से जो मिला नित्य स्वीकार है ।

 

आत्म अर्पण से ही स्नेह की साधना 

दो हृदय में जगी प्रीति आराधना ।

 

उर कली खिल गयी हाथ में हाथ हो 

बीतते युग रहें यदि मिला साथ हो ।

 

दिव्य बनता रहा नित्य अन्तः करण 

प्रेममय दृष्टि से हैं बँधे आचरण ।


९.हँसा कर रुलाया 


 

प्यार के गीत मैं गुनगुनाता रहा हूँ 

ज़िन्दगी में सदा मुस्कराता रहा हूँ 

तेरे प्यार में ही सभी कुछ लुटाया।

मगर तूने मुझको हँसा कर रुलाया ।।

 

बताऊँ किसे मैं रहा कैसा सपना 

भुलाऊँ उसे कैसे बेहद जो अपना 

भटकता हुआ राह में तेरी आया ।

मगर तूने मुझको हँसा कर रुलाया ।।

 

पखेरू हैं उड़ते हवा के सहारे 

सदा रूकती पतवार सागर किनारे 

नीरज है कोई सहारा न पाया ।

मगर तूने मुझको हँसाकर रुलाया । ।


१०.एकता सद्भाव का संदेश


निज प्यार के चलन  को साकार कीजिए 

एकता   सद्भाव   का   सन्देश दीजिए ।

 

अब    मज़हबी    दीवारें 

नफ़रत        की   तोड़  दो 

शुभ भावना अनुरक्ति का 

पैग़ाम      जोड़      दो ।

 

बात भेद भाव की निकाल दीजिए 

एकता सद्भाव का सन्देश दीजिए ।

 

होगा भला तभी जब 

खुद आप भले हों 

सुन्दर मिलेगी वास तब 

जब पुष्प खिले हों ।

 

खुशहाल रहे जीवन प्रयास कीजिए 

एकता सद्भाव का सन्देश दीजिए।

 

मिट्टी से जिसे प्यार 

देशभक्त वही है 

समरसता का व्यवहार 

करे संत वही है।

 

नीरज’ स्वयं चरित्र से उत्थान कीजिए 

एकता सद्भाव का सन्देश दीजिए ।

 


११.हर बात न पूछो 


खड़े- खड़े चौराहे पर हालात न पूछो ।

मौसम का इन्सान यहाँ हर बात न पूछो ।।

 

रूप वास्तविक छिपा यहाँ नक़ली चेहरे में 

होती गुमनामों की मौत, असली मोहरे में 

धनिक बढ़ रहा और, बढ़ती निर्धन की निर्धनता 

पाठ चल रहा साम्यवाद का लोकतंत्र की बात न पूछो ।

खड़े- खड़े चौराहे पर हालात न पूछो ।

 

हैं धर्म देवता, संविधान के रक्षक ज्ञानी 

पर उपदेश कुशल लेकिन खुद एक न मानी 

करने को उत्थान राष्ट्र का निकल पड़े हैं 

काग़ज़ की नौका से तुम संघात न पूछो ।

खड़े -खड़े चौराहे पर हालात न पूछो ।।

 

 है परिवर्तन मन वाणी कर्मो में जितना 

अवसरवादी आज मनुज हो गया है उतना 

इसीलिए विधि भी नीरज करता है छलना 

नई सदी में गति मति का विस्तार न  पूछो 

खड़े -खड़े चौराहे पर हालात न पूछो ।।


१२.जीवन पथ लम्बा है चलना आधार 


जीवन पथ लम्बा है चलना आधार ।

अनजाने आ जाती 

विरहिन सी रात 

मेरी कुछ अपनी कुछ 

कह जाती बात ।

 

भरमाती आशायें करती हैं वार ।

जीवन पथ लम्बा है चलना आधार ।

 

अनुभूतियों में है 

व्याकुल मन व्यग्र 

आतुरता मिलने की 

कामना     समग्र ।

 

खोकर ही पाने से मिलता है सार 

जीवन पथ लम्बा है चलना आधार । ।

 

परिवर्तन विधि का है 

समय काल जो 

गन्तव्य निश्चित है 

गतिशील हो । 

निश्चल हों रे मानव तेरे उपकार । 

जीवन पथ लम्बा है चलना आधार । ।

 

दुःखों से आप्लावित 

शाश्वत क्रम है 

सुखों की छवियाँ 

दो क्षण का भ्रम है । 

 

दुख की आधारशिला सुखों का क्षार 

जीवन पथ लम्बा है चलना आधार । 

 

बड़ी बड़ी गहरी हैं 

खाईयाँ अनेक 

धैर्य से है बढ़ना 

दुहाइयाँ अनेक । 

 

श्रृंग पर पहुँचने का साहस मत हार । 

जीवन पथ लम्बा है चलना आधार । ।

 

स्वर्ग तक पहुँचने की 

सीढ़ियाँ जहाँ 

घुसतीं क्यों नरक में 

पीढ़ियाँ यहाँ । 

 

कर्मो की वैतरणी करना है पार। 

जीवन पथ लम्बा है चलना आधार । ।

 

रुक जाये गति में जो 

मृत्यु है यही 

सतत रहे चलता जो 

जीवन वही । 

 

 चलने के क्रम में ही सारा संसार । 

जीवन पथ लम्बा है चलना आधार । ।

 

सुख दुख अँधियारा 

उजियारा जहाँ 

प्रकृति के नियम क्रम 

हैं  ‘नीरज ‘ वहाँ । 

 

सृष्टि का निरन्तर है होता विस्तार । 

जीवन पथ लम्बा है चलना आधार । ।


१३. सबके मन बस जाओ कवि तुम 

कोई गीत सुनाओ कवि     तुम 

अन्तर्प्रेम जगाओ    कवि   तुम 

नवल दृष्टि से सृजन शक्ति से

शाश्वत नेह बढ़ाओ कवि तुम । 

 

खोई   हुई   मनुजता    क्यों   है 

सोई   हुई   अनुजता    क्यों    है 

मानव मन में कटुता  क्यों   है 

सबका ज्ञान कराओ कवि तुम । 

 

राग द्वेष मिट जाए   मन   का 

हटे आवरण इस   जीवन     का 

सुगम सुपथ हो जाएं      सबको 

ऐसा पथ दिखलाओ  कवि तुम ।  

 

सबमें  अपनापन   जग       जाये 

प्रेम- एकता    सब           अपनायें 

झूठा   वैभव            धन-लोलुपता 

मन अभिमान भगाओ कवि तुम । 

 

मिटे विषमता, समता        आये 

सकल विश्व अपना हो       जाये 

‘नीरज’ निज अनुराग लुटा  कर 

सबके मन बस जाओ कवि तुम। 


१४.रीते रह न सकेंगे ये स्वर 

रीते रह न सकेंगे ये  स्वर

गीतों में साकार    करुँगा।

 

वासंती   मलयज   को छूकर

सिहर उठेगा मन का  सागर

बूँद-बूँद    रस से    भर     दूँगा

मैं  प्राणों   की    रीती     गागर

श्वास-श्वास में पुलकन भरकर

प्राणों      से   अभिसार   करुँगा।

 

जीवन के इस केन्द्र बिन्दु में

परिधि    बनी सारी  आशायें

कभी सरल ऋजु कभी हो गईं

बढ़ती     घटती     ये    रेखायें

मानस   की तूलिका स्नेह रंग

से     सारा    आकार    भरूँगा ।

 

सभी   दिशाओं का अवगुंठन

खोल करुँगा अभिनव  दर्शन

और   शून्यता के   सागर    में

भर     दूँगा   अद्भुत आकर्षण

बन्धन    की   मोहक कारा में

सीमाओं     को    पार करुँगा ।

 

बढ़ते  हुये सफर के रथ     पर

आयेंगे     तूफ़ान         भयंकर

किन्तु न डिग पायेंगे पथ से

मेरी गति है अडिग अनश्वर

‘नीरज’   पथ की बाधाओं को

मैं सहर्ष   स्वीकार     करुँगा ।


१५.खोल दिये घूँघट पट सारे 

ये अनंग के घन फिर छाये।

 

अनायास ही मधुकरियों ने

अपने   कोमल   पंख पसारे

अँगड़ाई    लेकर कलियों ने

खोल  दिये घूँघट पट सारे

गुन-गुन करते भ्रमर रसिक सब

उपवन        के    दि्ग      धाये।

ये  अनंग के घन  फिर     छाये। ।

 

कंचुक  पत्र   वक्ष    के    खिसके

सहमे -सहमे   झिझके -झिझके

मंद     पवन     के       स्पर्शों      से

झुक-झुक   जाते    जलवंती    से

बाहुपाश में    भर      अलियों    ने

चूम-चूम दृग   कोर          छिपाये।

ये  अनंग के   घन    फिर     छाये। ।

 

रस की वृष्टि हुयी   मधुवन में

मादकता भर दी कण-कण  में

गलबाहीं   भर-भर      मदमाते

मधुमय रस के  अवगाहन   में

सम्मोहन     में           डूबे -डूबे

सब रति            रंग        नहाये

ये अनंग के घन फिर छाये । ।


१६. शूलों की सेजों पर 

प्यार गुलाबों का पलता है शूलों की  सेजों पर   सजकर

लक्ष्य बटोही को मिलता है कँकरीले दुर्गम पथ चलकर।

 

मौसम बे मौसम लगती  हैं

चाही कुछ अनचाही     चोटें

और उभर आतीं रह  रहकर

चुपके से जो लगीं     खरोंचें।

नीर पलक में भर भर आता , पीड़ा के उद्गम से चलकर

प्यार गुलाबों का पलता है शूलों की सेजों  पर     सजकर।

 

लगन    हुई   ऐसी  मनमानी

बात किसी की कभी न  मानी

अभिलाषाओं     के   पनघट से

प्यासी     लौटी प्रणय   कहानी ।

 

फिर भी आशायें करती हैं, यात्रायें पीड़ा के   रथ    पर

प्यार गुलाबों का पलता है शूलों की सेजों पर सजकर ।

 

सुविधा की आधारशिला   पर

सुख के क्षण कुछ ठहर न पाते

बाँह पकड़कर ये उन्मन   पल

दुख  की   घाटी में     ले     आते।

 

फिर भी थकते नहीं चरण ये, गहन गुफा के निर्जन पथ पर

प्यार गुलाबों का पलता है शूलों की   सेजों    पर      सजकर ।

 

जीवन क्या वर्षा   का    बादल

बरस -बरस  रीता हो      जाना

उमड़ घुमड़ दो क्षण अम्बर में

अपना सब अस्तित्व मिटाना ।

 

लक्ष्य कभी मिल जायेगा ही, ‘नीरज’ को इस सूने पथ  पर

प्यार गुलाबों का पलता है शूलों   की सेजों     पर     सजकर।


१७.आधार शिला दुःख पर 

जीवन      की  आधार शिला दुःख पर ही अपनी मानी है ।

सुख की अनुभूति मिले कैसे दुःख से तो प्रीति पुरानी है। । 

 

हम    आदी   भी   बन   जाते हैं 

दुःख का  ही   साथ   निभाते  हैं 

 

मन   सागर   को  बूंदो  की चोटें तो सहनी पड़ती हैं। 

ध्येय नहीं आसान हमारा दुख की भरी कहानी है । । 

 

सत्य सदा आगे     आयेगा 

झूठा जगत न टिक पायेगा 

 

किन्तु नहीं  अब  भ्रमित ओज में, अपनी शक्ति गवानी है। 

और निरन्तर सत्य खोज में, बढ़ना ही  नित    जवानी    है । 

 

तम प्रकाश ज्यों सुख-दुख आता 

दिवस रात्रि सा   साथ     निभाता 

 

और समय की गति पर दोनों , करते रहते मनमानी हैं । 

युगों-युगों से दोनों की ही, सत्ता जानी पहचानी है  । । 

 

दुख आया है    तो    जाएगा 

सुख क्या हर दम रह पाएगा 

 

‘नीरज’   सुख दुख आने की, यादें क्या  दोहरानी   हैं।  

क्या है अपना और पराया,क्षणिक भ्रमण सैलानी हैं । । 


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