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श्रवण कुमार पांडेय पथिक फतेहपुर की हिंदी कविता

मुक्तक

एक कदम तुम भी चलो एक कदम हम भी चलें,
आस्था भरे पग धरो इन्तजार मे हैं मंजिलें

श्रवण कुमार पांडेय पथिक फतेहपुर

श्रवण कुमार पांडेय पथिक फतेहपुर की हिंदी कविता

खत्म हो रही पूरी ज़िंदगी,
आगा पीछा सोंचते सोंचते,
अहंकारी अपनों को अपना बनाने में,

लोग जिह्वामृदु उर से हिंसक,
मेरे लिए जुबानी हितचिंतक ,
करते हितचिंतन जब बैठते पाखाने में,

भूल गए मेरे चले हुये पग,
बिसर गये और बहुत कुछ,
पैताने से आकर बैठे हैं सिरहाने में,

बोतल जब फ़ूटी, चुप थे,
मगर ढक्कन में लड़ रहे,
भांति भांति के लोग मिले जमाने में,

अक्ल से बौने हुए लोग,
घर में उगा रहे हैं दुर्योग,
डटे हुए हैं एक हारे हुये को हराने में,

कोई छिपकर वार करे,
कोई पेंडुलम सा विहरे,
कोई खंजर बना हुआ ताने बाने में,

बूढ़ी मुद्रा से फ़टे लोग,
सत्य को नकारते लोग ,
वक्त के कबूतर मिले नौबतखाने में,

खाकर पुरखों की कीर्ति,
बने हैं नुमाईसी उदरम्भर,
खर्च हो रहे हैं पुरखों के गुण गाने में,

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