Hindi Poems of Sampurnanand Mishra- क्रूर काल और भागो- भागो
Hindi Poems of Sampurnanand Mishra
क्रूर काल
ग्रास हो गया
क्रूर काल का
तीस साल में ही रामू
विधवा बना दिया पत्नी को
भरी जवानी में
छिप-छिप कर रोने लगी
छोटे- छोटे चार बच्चों का
भार ढोने लगी
रोज घुटती थी
रोज मरती थी
बच्चों की भूख ने
लाचार कर दिया
जूठे बर्तन मांजने पर
बाध्य कर दिया
पड़ोस में काम करने लगी
गुज़र बसर होने लगी
पटरी पर गाड़ी आ रही थी
बिधाता को यह बात नहीं
भा रही थी
कोरोना की बीमारी में
पहला बेटा स्वर्ग सिधार गया
दूसरा भूख से लड़ता रहा
जद्दोजहद करता रहा
अन्न के एक- एक
दाने को तरसता रहा
दम तोड़ दिया
अन्नाभाव में उसने भी
निष्ठुर समाज ने उसके
जीवन को मोड़ दिया
शेष दो के लिए जीती रही
अशेष भार ढोती रही
विपन्नता के चक्रव्यूह में
फंसती रही
जीविका के लिए मारी- मारी
फिरती रही
जिस उम्र में
सौंदर्य प्रसाधन की दुकान
तलाशती रहती हैं
मेरे पड़ोस की महिलाएं
उसी वय में
शेष दो बच्चों के साथ
इहलीला समाप्त करनी पड़ी उसे
भागो- भागो
रक्तिम आंखें
प्यासा ख़ून का
महानगर से सीधे
गांव – पथ पर
पंजें लहू पिए हुए
रौंदते हुए
अनेक मासूमों की
अंकुरित आशाओं को
भागो-भागो
चिल्लाते हुए
गिरते हुए
भहराते हुए
नन्हें- नन्हें बच्चे
जिनके नहीं टूटे हैं
दांत अभी दूध के
छिप जाते हैं
मां की आंचल में
सबसे अधिक
महफूज़ जगह समझकर
और
आता है भेड़िया
ख़ूनी पंजों से
झपट्टा मारकर
छीन ले जाता है
चांद के टुकड़ों को
क्योंकि आर्थिक मंदी में
नहीं बढ़ाना चाहते हैं
अपने पांव मज़दूर
शहर की ओर
क्योंकि
संज्ञाशून्य हो चुके
हौसलों की
धमनियों में फ़िर से
दौड़ने लगा है ख़ून
नहीं चाहते हैं कि
कोई आदिम भेड़िया
गिरा दे गर्भ
जो उनकी आंखों में
निश्चिंत पल रहे हों
सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874
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