Meri Jarurat Lagi | मेरी जरुरत लगी/ परम हंस मौर्य

Meri Jarurat Lagi | मेरी जरुरत लगी/ परम हंस मौर्य

मेरी जरुरत लगी


मेरी खोज तो तब हुई जब मेरी जरुरत लगी

वरना मै तो बेकार था।

अंदर से थी नफ़रते ही नफ़रते सबके दिलो में,

बाहर से झूठा प्यार था।

मेरी खोज तो तब हुई जब मेरी जरुरत लगी

,वरना मै तो बेकार था।

जिनके इंतज़ार मे बिता दी जिंदगानी,

उनको तो किसी और का इंतजार था।

मेरी खोज तो तब हुई जब मेरी जरुरत लगी वरना,

मै तो बेकार था।

मै तो उम्मीद लगाये हुये था अपनो से,

पर ये तो मतलब का संसार था।

मेरी खोज तो तब हुई जब मेरी जरुरत लगी,

वरना मै तो बेकार था।

ढूँढता रहा सच्चाई जिस जमाने,

वहाँ तो जुल्म और भृष्टाचार था।

मेरी खोज तो तब हुई जब मेरी जरुरत लगी,

वरना मै तो बेकार था।

मुझको अपना कहने वाले भी कभी काम न आये,

जब मै बेबस लाचार था।

मेरी खोज तो तब हुई जब मेरी जरुरत लगी,

वरना मै तो बेकार था।

कैसे खरीद पाता कुछ पल मोहब्बत के,

जहाँ नफ़रत का बाज़ार था।

मेरी खोज तो तब हुई जब मेरी जरुरत लगी,

वरना मै तो बेकार था।

मांगी मदद जब भी किसी से मैने,

सबके होंठो पे सिर्फ इंकार था।

मेरी खोज तो तब हुई जब मेरी जरुरत लगी,

वरना मै तो बेकार था।

रुठ गया था हर कोई मुझसे अपना,

मतलबी स्वार्थी हर रिश्तेदार था।

मेरी खोज तो तब हुई जब मेरी जरुरत लगी,

वरना मै तो बेकार था।

चला था लोगो के दिलो में घर बनाने,

पर सबके दिल में तो तिरस्कार था।

मेरी खोज तो तब हुई जब मेरी जरुरत लगी,

वरना मै बेकार था।

मेरे फटे पुराने कपड़ो पर सब हँसते थे,

सबको अपनी अमीरी पे अहंकार था।

मेरी खोज तो तब हुई जब मेरी जरुरत लगी,

वरना मै तो बेकार था।

दे रहा था जहाँ सभ्यता का परिचय,

वहाँ तो बिगड़ा हुआ संस्कार था।

मेरी खोज तो तब हुई जब मेरी जरुरत लगी,

वरना मै तो बेकार था।

परम हंस जलाते रहे ज्ञान का दीपक सदा,

जहाँ अज्ञानता का अंधकार था।

मेरी खोज तो तब हुई जब मेरी जरुरत लगी,

वरना मै तो बेकार था।

meri-jarurat-lagi
परम हंस मौर्य रायबरेली उत्तर प्रदेश

अन्य पढे:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *