Mujhe Pata Hai | मुझे पता है – रश्मि संजय श्रीवास्तव
Mujhe Pata Hai / मुझे पता है – रश्मि संजय श्रीवास्तव
मुझे पता है
मुझे पता है .. तुम्हे अच्छा लगता है..
मेरा अपलक तुम्हे निहारते रहना!
कनखियों से देखना, फिर नजरें चुराना
बंद आँखों से देर तक, तुम्हें दुलराते रहना..
मुझे पता है !
तुम खुश हो कि उम्र बढ़ रही है।
प्रेम की परिपक्वता के साथ,
नजदीकियाॅं भी नये आयाम गढ़ रही हैं!
मुझे पता है ! तुम्हे अच्छा लगता है..
मेरे माथे पर ! अपने प्रेम का टीका सजा देखना..
मुझे अपने प्रेम से हरा–भरा देखना..
हाँ थोड़ा सा ! थकने लगी हूँ मैं..
कभी कभी यूँ ही, खीझ जाती हूँ..
पर मुझे पता है , तुम्हे अच्छा लगता है..
अक्सर मेरा ख्याल रखना!
मेरी बिखरी लटों को बटोर देना..
मुझे पता है ! तुम्हे अच्छा लगता है..
कपोल पर प्रेम-बिंदु सहेज देना।
फर्क नहीं पड़ता तुम पर..
मेरे तन के किसी बदलाव का।
तुम्हे अच्छा लगता है..
अब भी मेरा..तुम्हारे ऑंगन में डोलते रहना।
मेहँदी की सुगंध बिखेरना,
पायल के नुपुर की रूनझुन सुनना।
मुझे पता है ! तुम्हे अच्छा लगता है..
मेरी कमरबंध का मुस्करा कर..
तुम्हारे नैनो को छेड़ते रहना..
तुम्हे अच्छा लगता है ..
घर के किवाड़ों पर बनी रंगोली को ..
अपनी पोरों से उकेरना।
मेरे प्रेम के कुसुम को शीतल सम्मान देना..
मुझे पता है ! तुम्हारी हर धड़कन यही कहती है..
कि यूँ ही जीवन को सजाये रहना।
अपने भावों के गुँथे हुए हाथ
और अपना साथ.. कभी ना छोड़ना!
मुझे पता है ! तुम्हे अच्छा लगता है..
कभी-कभी यूॅं हीं..कुछ ना कहना!
जल को एकत्रित कर लें
आओ हाथ बढ़ा कर हम सब,
जल को एकत्रित कर लें।
खेतों-खलिहानों की भावी
पीढ़ी को चित्रित कर लें।
मिलें भरे घट, जल-असुवन से,
सलिला कहीं मिले निष्ठुर।
खत्म हुआ दिखता पानी है,
पंछी भी हैं चिंतातुर।
अंजुलि-अंजुलि सिमटा लें हम,
जल को व्यर्थ बहायें क्यों!
मुँह तकता भविष्य अपना है,
फिर संघर्ष बढ़ायें क्यों।
पानी जीवन-संबंधों का,
रहता है अनमोल सदा।
शुष्क कंठ या तरल धरा बिन,
जीवन का क्या मोल भला।
अद्भुत संचय जल का करके,
अपना कल सज्जित कर लें
आओ पुराने ढंग बदलें औ
सपने नव-निर्मित कर लें।
रश्मि संजय श्रीवास्तव
(रश्मि लहर)
लखनऊ
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