Woman pain- नारी की पीडा /वेदिका श्रीवास्तव

नारी की पीडा 

(Woman pain)


सम्पूर्ण जगत है ऋणी हमारा फिर भी मोल चुकाते हम ,
खुद तो मरते रहते हैं और जीना  भी   सिखलाते   हम !!

 

हर पल भय सताता रहता कब, कौन ,कहाँ मिल जाये वहशी,
रखते दिल में दिल की बाते , रिश्तों को रहते   बचाते    हम !!

 

सबकी इच्छाओं पर चलते,अपना तो जैसे काम यही ,
ज़रा -ज़रा सी गलती पर ताने -मेहने ही  पाते हम !!

 

कब ,कौन कर जाये छल हमसे ,कब कौन बना डाले वस्तु ,
होते जब तन्हा   कभी,यही   सोच -सोच    घबराते   हम !!

 

प्रेम  ही   अपनी   मांग   रही,स्थान   मिले    ये   चाहत    थी ,
त्याग ही त्याग किया हमने और फिर भी त्यागे जाते हम !!

 

मर्यादा जो चलूँ  निभाने  तो   फर्ज   हैँ   आडे   आते    अक्सर ,
संस्कारों को निभा – निभा कर खुद का सम्मान गंवाते हम !!

 

पिता ,भाई ,प्रेमी हो या पति ,हो काका ,ताऊ य़ा मित्र ,
रिश्तों की अपनी हैं शर्तें ,एक एक की लाज बचाते हम !!

 

कितने    युग     बीत      गए ,कितने       बाकी    बितने    को ,
सम्पूर्ण जगत की जननी होकर भी,गंदी गालियां पाते हम !!

 

कोख हमारी इतनी सी और पीडा सीमा पार हैं सहते ,
माँ , बेटी , बहन , प्रेमिका , बहु ,  सखी   नाम   हमारे ,
इतने सारे पर्याय हैं फिर भी अपनी पहचान को तरस जाते हम !!

 

जहाँ भी   देखो   दृष्टि   हम   पर   रहते   लोग   गडाये ,
नजर झुकाकर,टीस छुपाकर पीडा अपनी छुपाते हम !!

 

शक्ति  का अंश  है  हममें,शिव  को  रहते  मगर  तरसते ,
हर पल देते अग्नि – परीक्षा पर श्रीराम नहीं पा पाते हम !!


woman-pain-vedika-srivastav वेदिका श्रीवास्तव

 

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