Ish-vandana kavita | ईश- वंदना कविता

Ish-vandana kavita : दिल्ली  के वरिष्ठ साहित्यकार  सीताराम चौहान पथिक की रचना  ईश- वंदना कविता  में नव-युवाओ और राष्ट्रीय नेताओं को संमार्ग  पर चलने और भारतीय संस्कृति अपनाने की प्रार्थना है, हमे आशा  है कि  प्रस्तुत  कविता आपको  प्रेरणा देगी। 

ईश- वंदना 


सत्य की मशाल थाम ,
विश्व का तिमिर हरो ।
अज्ञानता के कूप को ,
अध्यात्म – अमॄत से भरो ।

भौतिक प्रगति तो खूब हुई ,
उससे अधिक नैतिक पतन।
हम राष्ट्र- भाव भूल गए ,
युवाओं में फैशन टशन ।

भगवान इन युवाओं को ,
नैतिक – चरित्र प्रदान कर ।
लुट रहा है देश भारत ,
भ्रष्टाचार का निदान कर ।

भय – मुक्त अपराधी हुए ,
हत्या डकैती चरम पर ।
षड्यंत्र खुल कर हो रहे ,
अब आँच  आई धर्म पर ।

भूलै विवेकानंद रामादर्श को,
मन्दिर में अरुचि आराधना ।
कैसे हॄदय में शान्ति हो ,
भीतर छिपी दुर्भावना ।

हे ईश , लौटा दो मेरे ,
भारत का सुन्दर स्वर्ण युग ।
आओ कल्कि अवतार बन ,
लौट आए भू पर धर्म – युग।

मन में नित आशा संजोए ,
दो नयन पथराने लगे हैं ।
आ जाओ गिरिधारी धनुर्धारी,
पथिक पग लड़खड़ाने ‌लगे है

Ish-vandana kavita
सीताराम चौहान पथिक

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