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Kalam Hindi Kavita/ क़लम- सीताराम चौहान पथिक

क़लम (Kalam Hindi Kavita)

आप लिख-लिख कर ,
क़लम घिस जाएंगे ।
ये जो है – चिकने घड़े ,
रंगत नई दिखलाएंगे ।।

आज भ्रष्टाचार बे-ईमानियो ,
का – – – – – दौर – – है ।
आग ऐसी करो पैदा ,
खुद- ब- खुद जल जाएंगे ।।

क़लम में आतिश भरो ,
कातिल दहल जाएं ।
लिखो कुछ चंद बरदाई ,
वे पृथ्वीराज बन जाएं ।।

कभी कश्मीर अरुणांचल ,
असम पर दुश्मनी – दावे ।
ये कमजोरी हमारी- – फिर न,
उनकी – -ढाल बन जाए ।।

आओ हे कवि, हुंकार भरो ,
अभिव्यक्त करो उद्गारों को ।
सोते जन-मानस में भर दो ,
क्रांति भरे अंगारो को ।।

राष्ट्र- धर्म कर्तव्य – बोध और,
भारतीयता – – की गंगा ।
जन-जन में हो जाए प्रवाहित
आह्वान है रचनाकारों को।।

खड्ग- लेखनी को थामो ,
निकॄष्ट निरंकुश पर बरसो ।
पीड़ित को न्याय दिलाना है,
पथ-भ्रष्टों पर जम कर बरसो।

सौगंध है रचनाकारों को ,
ललकार पथिक की सुन लेना
है छिपे – – विभीषण दुःशासन
बिजली बन कर इन पर बरसो।।

  • आतिश – – आग ,
  • कातिल- हत्यारा,
  • दहल जाना- घबराना ।
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सीताराम चौहान पथिक

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