करवा चौथ | दुर्गा शंकर वर्मा “दुर्गेश”
करवा चौथ | दुर्गा शंकर वर्मा “दुर्गेश”
चांद का सारा दिन, इंतजार होता है।
फिर रात में
उसका,
दीदार होता है।
हे चांद जल्दी आना,
छिपना नहीं।
मैं छत पर जाऊंगी,
रूकना नहीं।
मैं सब कुछ अच्छा करूंगी,
कुछ कहना नहीं।
उम्र बढ़े मेरे प्रियतम की सदा,
इसीलिए श्रृंगार होता है।
तुझे देखकर मैं पानी पियूंगी,
सजना के लिए जियूंगी,मरूंगी।
मैं सच कहती हूं,
पति के लिए अच्छा करूंगी।
इस त्योहार का सदियों से,
इंतजार होता है।
मेरा ब्रत सफल करना,
मेरे सुहाग की रक्षा करना।
मैं हाथ जोड़ती हूं,
दुआओं से मेरी झोली भरना।
इस दिन मैं भी संवरती हूं,
और तू भी संवरता है।
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