Sapanon Ka Saudaagar-सपनों का सौदागर/ सीताराम चौहान पथिक

Sapanon Ka Saudaagar-सपनों का सौदागर / सीताराम चौहान पथिक

सपनों का सौदागर


 बेच रहा हूं मैं सपनों की ,
लगा – लगा कर फेरी ।
कौन खरीदेगा लुभावने ,
सपनों की यह ढेरी ।।

कीमत अधिक नहीं है इनकी,
क्यों   करते  हो  देरी ।
अवगुण इस गठरी में डालो ,
यह कीमत है मेरी ।।

मेरे इन सपनों में तुमको ,
स्वर्णिम लोक मिलेगा ।
रामायण के राम – कॄष्ण का,
लीला – लोक मिलेगा ।।

यही नहीं कुछ और दिखाता
हूं मैं तुमको सपने ।
बलिदानों की अनुपम गाथा ,
देश – भक्ति के सपने ।।

गुप्त काल के स्वर्णिम युग की ।
कहो झलक दिखलाऊं ॽ
सर्वस्व दान सम्राट भिक्षु ,
जन – हित के दृश्य दिखाऊँ ॽ

विजयी समुद्र गुप्त की हलचल ।
घोड़ों की पद- चाप सुनाऊं ।
बना मगध – सम्राट चन्द्र को ,
त्याग – मूर्ति चाणक्य दिखाऊं

मेरे सपनों की गठरी में ।
आदर्शों की छटा निराली ।।
राम वन-गमन सेवा श्रद्धा ।
भ्रातॄ – प्रेम सु मधुर आली ।।

देवव्रत की भीष्म प्रतिज्ञा ।
कुरुक्षेत्र गीता – – उपदेश ।।
आओ मेरे स्वप्न – पारखी ।
निर्मल करो हॄदय का देश ।।

मेरे स्वप्न – लोक के सपने ।
कर्म – योग सिखलाते ।।
आदर्शों के सतरंगो में ।
भक्ति – मार्ग दिखलाते ।।

इन सपनों को आँखों  भर ।
दृढ़ – निश्वयी बन जाओ ।।
घॄणित और हिंसक  हॄदयो मैं
स्नेह – गंग  बन जाओ ।।

मै हूं इक सौदागर ।
अवगुण इस गठरी में डालो।।
बन जाओ आदर्श नागरिक ।
जर्जर यह देश संभालो ।।

इन आदर्शो से प्रेरित होकर ।
नवयुग निर्माण करो तुम ।।
मंझधार  में है देश की नौका
इसका उद्धार करो तुम ।।

जी हां , मैं हूं स्वप्न बेचता ।
इस व्यापार जगत में ।।
आओ बंधु  और प्रेमी जन ।
सौदा भारत के हित में ।।

अपना आलस और निराशा।
इस गठरी में भर दो ।।
देश – भक्ति की अलख जगा कर ।
स्वाभिमान का वर लो  ।।


sapanon-ka-saudaagar

सीताराम चौहान पथिक
नई दिल्ली ।

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