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Bhakti Kee Mahima – भक्ति की महिमा

Bhakti Kee Mahima – भक्ति की महिमा

भक्ति की महिमा 


आस्थाएं हों प्रबल ,
विश्वास में हो आत्म बल ,
आना ही पड़ता है उन्हें ,
प्रभु – भक्ति में इतना है बल।

भक्त तो बस भक्त हैं ,
सुमिरन में ही आसक्त है ,
आठों पहर बस एक धुन ,
हरिनाम में मन मस्त है ।

भक्ति के प्रभाव से ,
अहं  अभाव से ,
पूर्ण समर्पण है जहां ,
आते हैं प्रभु खिंचाव  से ।

भीलनी के बेर हों ,
विदुर का रुक्ष शाक हों ,
भगवान भूखे भाव के ,
कैसा किसी का ठाट हो ।

भक्त धन्ना भक्त तुलसी ,
भक्त ध्रुव प्रहलाद नरसी ,
भक्ति की अनुपम मिसालें ,
प्रभु – कॄपा भी खूब बरसी।

भक्त की जो भावना ,
प्रभु पूर्ण करते कामना ,
जिस भाव की प्रभु भक्ति हो
मिलते है प्रभु – यह मानना ।

भगवान परमानन्द है ,
भक्त भी सानंद है ,
देखो लग्न प्रभु में लगी ,
चहुं और ब्रह्मानंद है ।

जैसा किसी का भक्ति भाव ,
सात्विकता का प्रभाव ,
धन्य संस्कृति  की विरासत ,
धन्य भारत भक्ति भाव ।।


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सीताराम चौहान पथिक

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