स्मृति शब्दाधारित रचना | मन्द-मन्द तेरी मुसकान /हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश’

स्मृति शब्दाधारित रचना।

मन्द-मन्द तेरी मुसकान

स्मृति में चुपके से तेरा,
वह घूॅघट पट सरकाना,
पॉव दबा कर आते तेरे,
पग-नूपुर का बज जाना।
तृप्ति कहॉ मिल पाती बोलो,
लुक-छिप प्रणय निवेदन में,
मधु भरे हठीले यौवन का,
मदहोश मुझे कर जाना।1।

रिमझिम पावस के मौसम में,
घनघोर घटा बन छा जाना,
कोमल बॉहों में भर मुझको,
वह जी भर तेरा सताना।
सदा स्मृति में रही कौंधती,
मन्द-मन्द तेरी मुसकान,
नयन कोर से प्रियवर तेरा,,
बिन कहे बहुत कह जाना।2।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश’,
रायबरेली

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