Motivational Ghazal In Hindi- पवन शर्मा परमार्थी

Motivational Ghazal In Hindi- पवन शर्मा परमार्थी

ग़ज़ल -१ 


किसी प्रकार बेटियों को, यहाँ बचाया जाय?
उनके लिए आंदोलन, एक चलाया जाय।

न्याय, होते न्याय नहीं, होता है देश में,
कभी भी इसी बात को, नहीं भुलाया जाय।

जो बना रहे शिकार, प्यारी बेटियों को,
गोली लगे या फाँसी, पर लटकाया जाय ।

बलात्कार औ’ हत्या, की बढ़ीं घटनाएं,
कहाँ तलक उन सभी को, अब गिनाया जाय?

न पुलिस पर ही भरोसा, ना ही सरकार पर,
इसलिए खुद बचने का, मार्ग बनाया जाय ।

अपनी अस्मत और जान, बचाने के वास्ते,
कुंगफू, जूडो कराटा, उन्हें सिखाया जाय ।

माना कि इतना काफ़ी, नहीं सुरक्षा खातिर,
इसलिए और तरीका, भी अपनाया जाय।

न बचाता कोई भी, खुद को बचाना है,
ऐसी हिम्मत, होंसला, मन में लाया जाय ।

कानून कुछ न करे तो, लोग आगे आएं,
ऐसा प्रचार देश में, ही करवाया जाय ।

यदि मानसिकता बदले, तो रूके अपराध,
सभी लोगों को ऐसा, अब समझाया जाय ।


ग़ज़ल -२

बेकार अपने आंसू, न बहाइए ज़नाब,
अपना ही ना देश का, भी सोचिए ज़नाब।

गर देश सलामत है तो, सब ही मजफूज़ हैं,
वतन ही नहीं रहे तो, क्या कीजिए ज़नाब।

यह जरुरी नहीं होता, सबके मत एक हों,
इसका मतलब यह नहीं, दगा दीजिए ज़नाब।

जो वतन के खिलाफ़ हो, क्यों न गद्दार कहें,
इससे है अगर बचना, वफ़ा करिए ज़नाब।

यह देश सब ही का है, किसी एक का नहीं,
इसलिए मिल जुलकरके, सम्भालिए ज़नाब।

देश में रहना है तो, जय हिन्द कहना है,
यदि ना रहना तो चीन, में जाइए ज़नाब।

देश खण्डित करने का, जो ख्वाब देख रहे,
वो ऐसा ख्याल छोड़ें, समझाइए ज़नाब।

सरकार करे तो सवाल, न करे तो सवाल,
यह कैसा तरीका है, बतलाइए ज़नाब?

गत सरकारों से नहीं, कभी कोई पूछे,
ऐसा क्यों, किसलिए है, कुछ कहिए ज़नाब।

कुछ भी हो आदमी को, सब्र होना चाहिए,
सब ठीक हो जाएगा, सबर रखिए ज़नाब।


ग़ज़ल-३ 

जिंदगी की हर शय उसके नाम कर दी है

जिंदगी की हर शय उसके नाम कर दी है,
मुलाकातें, मुहब्बत सरे- आम कर दी है ।

शबो-रोज ही सोचता हूँ मैं उसके लिए,
इकतरफ़ा थी जो मुहब्बत बनाम कर दी है ।

उसका नूरानी चेहरा औ’ मदमस्त नज़र,
सनम की अदा ने जिन्दगी हराम कर दी है ।

छुप-छुप कर होतीं उससे मुलाकातें कभी,
विसाले-यार अब तो सुबहो-शाम कर दी है ।

इश्क कहें या मुहब्बत अजीब-सा-ही जज़्बा है,
कैद जुल्फों में दोस्त हस्ती गुलाम कर दी है ।


ग़ज़ल-४ 

आँचल में मुँह छुपा तुम रोया न करो,
अश्कों से अपनी पलकें भिगोया न करो।

बहुत कीमत है आँसुओं की ये समझो,
इन्हें बेकार में यों ही खोया न करो।

छूकर चली जाए हवा मस्त करके तो,
बेसुधी में यार इतना सोया न करो।

ख्वाब झूठे भी तो होते हैं ये समझो,
ज्यादा ख़्वाबों में भी तो खोया न करो।

इश्क़ तो इश्क़ होता है क्या भला, क्या बुरा?
इक डोर में वफ़ा, जफ़ा पिरोया न करो।


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पवन शर्मा परमार्थी
कवि-लेखक
दिल्ली, भारत ।

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