Mudit Mana Maa – मुदित मना माँ /बाबा कल्पनेश
Mudit Mana Maa – मुदित मना माँ /बाबा कल्पनेश
उज्ज्वला छंद
मुदित मना माँ
चार चरण
दो–दो
चरण सम तुकान्त
मापनी-212 212
212
(अंत 2 1 2 अनिवार्य )
प्रातः जैसै जगा माँ मिली।
देख मुदितामना माँ खिली।।
लाल रोना नहीं मैं खड़ी।
पूत जागे तुरत आ पड़ी।।
उज्ज्वला–उज्ज्वला हूँ सदा।
धार जैसै दिखे नर्मदा।।
हाथ सिर पर तुम्हारे धरा।
चित्त चिंतन करो अब खरा।।
भाव मकरंद की प्यास हो।
नित्य माधुर्य की आश हो।।
देखनी लेखनी माधुरी।
कौन चाहे भला बेसुरी।।
जागते बस रहो तुम यहाँ।
प्यार देगा तुम्हे यह जहाँ।।
सुप्त होना नहीं लालना।
गोद मेरा लखो पालना।।
नित्य लेखन करो आरती।
माँ रहे देखती भारती।।
जागना शर्त केवल सुनो।
भारती साधना को गुनो।।
गीत(गीतिका छंद)
(2) सिद्ध की महिमा
सिद्ध की महिमा
बड़ी है यह
हृदय से मान लें।
सत्य किंचित भय नहीं है
आप इतना जान लें।।
शेर राजा वन्य का है
बात इतनी खास है।
प्यार कुर्सुल–मृग–हिरन का
नित्य जानो पास है।।
यहाँ हाथी घूमते हैं निज
नयन दर्शन करें।
चहचहाते खग सभी
हैं चित्त आकर्षण करें।।
नेह से
पूरित लबालब देखकर
पहचान लें।
सिद्ध
की महिमा बड़ी
है यह हृदय
से मान लें।।
जिस नगर
में आप रहते
आदमी खूंखार है,
प्यार बातों से
करे पर उलट
उल्टी धार है।।
जब मिले
अवसर तभी वह
गला पकड़े घोट दे।
छिप तिमिर
के ओट बैठे
और भारी चोट दे।।
इस पलेठा
में पधारें सीख
मधुमय गान लें।
सिद्ध की महिमा
बड़ी है यह
हृदय से मान लें।।
है खुला
आँगन यहाँ का
शृंग गिरि आगार है।
दृष्टि जाती है
जहाँ तक सुंदरम्
विस्तार है।।
रात अगहन
ठंड लगती दिवस
सुख का सार
है।
गहन वृक्षों
से सुसज्जित गूँथ
प्रेमिल तार है।।
निज चरित
उज्ज्वल रखेंगे चित्त अपने
ठान लें।
सिद्ध की महिमा
बड़ी है यह
हृदय से मान
लें।।
प्रात–दिन–सायं
यहाँ भी जीव
जीवन वास है।
नित्य करती सरित
कल–कल ले
अधर में प्यास
है।।
स्रोत–झरने हरण
करते हर हृदय संत्रास
हैं।
सजी–सँवरी
प्रकृति निखरी,दृश्य बारह
मास हैं।
सुखद जीवन
हेतु अपने आ
यहाँ से ज्ञान
लें।
सिद्ध की महिमा
बड़ी है यह
हृदय से मान
लें।।
मत करें
आखेट आकर इस
धरा के वास्ते।
आप ऐसा
यदि करेंगे बंद
सभी हों रास्ते।।
जहाँ मंदिर
सिद्ध का है
कुछ क्षणों को
आइए।
सीख निर्मल
ज्ञान लेकर गेह
को निज जाइए।।
ओढ़नी यह प्यार
की है सब
सिरों पर तान
लें।
सिद्ध की महिमा
बड़ी है यह
हृदय से मान
लें।।
बाबा कल्पनेश |