new hindi kavita-विश्वास और दे दी पटरी/डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र

new hindi kavita-विश्वास और दे दी पटरी

१.विश्वास

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भयानक वक्त है यह
क़त्ल सरेआम हो
रहा है विश्वास का
रिश्तों का
चौकन्ना रहना होगा
नहीं तो छले जाओगे
नहीं है कोई यहां अपना
जिसने विश्वास का ख़ून न किया हो
भरे बाजार न उसके
शील को भंग किया हो
अब संभल जाओ
नहीं तो पड़ सकती है
चुकानी एक बड़ी क़ीमत
हर भोले चेहरे के पीछे
घात लगाए बैठा है शिकारी
मत समझो किसी को सगा
नहीं तो जिस दिन
तुम्हारी आस्था
की प्रतिमा टूटेगी
खंड- खंड होगी
उस दिन तुम्हारे
विश्वास का मुकुर भी
चूर- चूर हो जायेगा।


दे दी पटरी


दे दी पटरी मैंने अपनी
अगली पीढ़ी को
जिस पर वर्णमाला
लिखा करता था
और दे दिया मैंने वह सूत उन्हें
ताकि ली जा सके नाप
और वर्णमाला के जल से
अभिषेक किया जा सके
एवं
जानवर होने से
बचाया जा सके‌ साफ़- साफ़
लेकिन नहीं मालूम था मुझे
जिस पटरी ने
मेरी तीन पीढ़ियों की
आंखों में आंजन लगाया था
और भरपूर रोशनी में
हम लोगों को नहलाया था
कोंच दी जायेगी
आंखें उसकी
और कर दी
जायेगी नीलाम
सरे-आम बाज़ार में
ताकि न कर सके
एक ख़ूबसूरत सफ़र वह
एवं भाषा के स्टेशन
तक पहुंचते-पहुंचते
टूट जाय सांसें उसकी
और न प्रसूत कर सके
एक मुकम्मल आदमी
वर्णमाला के गर्भ
से फिर कभी

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डॉ. सम्पूर्णान्द मिश्र

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