poem on matrbhasha in hindi/मातृभाषा हिंदी-अखिलेश प्रताप सिंह

poem on matrbhasha in hindi

मातृभाषा हिंदी


अंग्रेजी या आंग्ल भाषा, का चुभता सदा है शूल,

 हिंदी हिंदुस्तान की भाषा, सब गए हैं भूल  ।।

 माँ”, पिताजी कहने में, अब खूब हैं शर्माते,

 मम्मी-मम्मी, डैडी-डैडी, जोर जोर चिल्लाते ।।

 अंग्रेजी का भुत चढ़ा जो, सबके उपर डोले,

आज का बच्चा मुंह खोले तो, अंग्रेजी ही बोले ।।

सुन पराये देश की भाषा, हम क्यों इतना ललचायें,

टिपिर-टिपिर जो इंग्लिश बोले, हम टुकुर-टुकुर मुह बाएं ।।

हिंदी पढ़ने को जल्दी अब, न हो कोई तैय्यार,

 क्या हमारी मातृ भाषा, है इतनी बेकार ।।

अंग्रेजी बोलने वाले, करोड़ो है धरती पर,

क्या सारे बोलने वाले, बन गए यहाँ कलेक्टर ?

कुछ न्याय व्यवस्था भी करती है, हिंदी का विरोध,

 अंग्रेजी में ले के आओ, तुम अपना अनुरोध ।।

कुछ सरकारी दफ्तरों का, हम करते दिल से स्वागत,

 मातृभाषा में जहाँ काम  होता, और जहाँ दे रही दस्तक ।।

जापान, रूस, चीन, अमेरिका, सभी की हैं,  अपनी भाषाएँ,

“भारत वासी” स्वदेश की भाषा बोलने में ही, शर्मायें ।।

जापान रूस चीन अमेरिका  की है अपनी भाषाएँ,

 स्वदेश की भाषा पढ़कर ही सब खूब इतरायें ।।

 आज ये सब देश भी करते, हिंदी का अभिनन्दन,

 अपने ही देश में न मिलता, हिदी को समर्थन ।।

था जब भारत सोने की चिड़िया, थी तब कौन सी भाषा ?

 हैं जानते हम सब फिर  भी, बोले आंग्ल भाषा ।।

आज अपनी धरती पर हैं, बहुत सी भाषाएँ,

आओ मातृभाषा को अब हम, आगे खूब बढ़ाएं ।।

अखिलेश प्रताप सिंह (रवि)  


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