narendra singh baghel ka geet/ नरेन्द्र सिंह बघेल का गीत
narendra singh baghel ka geet
कितनी रातें छली गयीं
कितने दर्द छुपाए दिल में,
कितनी रातें चली गयीं।
अलसाये अनुबंधों से फिर,
कितनी रातें छली गयीं।।
हमने जीवन में देखा था,
सुंदर सपन सलोना सा।
फूटें निर्झर प्रेम–पाश के,
महके कोना–कोना सा ।।
प्यार प्यास की ज्यों चातक सी,
तकती ऋतुयें चली गयीं।
अलसाये अनुबंधों से फिर,
कितनी रातें छली गयीं ।।
उनकी खट्टी –मीठी यादें,
रोज सपन में आती हैं।
सो जाताहै जग जब सारा,
सात सुरों में गाती हैं ।।
टूटे सपन सलोने जैसे,
स्वातिबूंद सी चली गयीं ।
अलसाये अनुबंधों से फिर,
कितनी रातें हैं छली गयीं।।
दर्द समेटे अंतर्मन में,
हम गुमसुम से बैठे रे।
हुआ प्रवासी मन है उसका,
शायद वापस लौटे रे ।।
नई उम्मीदें नई कल्पना,
आती–जाती चली गयीं।
अलसाये अनुबंधों से फिर,
कितनी रातें छली गयीं।
नरेन्द्र सिंह बघेल |
अन्य पढ़े :
आपको narendra singh baghel ka geet/ नरेन्द्र सिंह बघेल का गीत कैसा लगा अपने सुझाव कमेन्ट बॉक्स मे अवश्य बताए अच्छी लगे तो फ़ेसबुक, ट्विटर, आदि सामाजिक मंचो पर शेयर करें इससे हमारी टीम का उत्साह बढ़ता है।
हिंदीरचनाकार (डिसक्लेमर) : लेखक या सम्पादक की लिखित अनुमति के बिना पूर्ण या आंशिक रचनाओं का पुर्नप्रकाशन वर्जित है। लेखक के विचारों के साथ सम्पादक का सहमत या असहमत होना आवश्यक नहीं। सर्वाधिकार सुरक्षित। हिंदी रचनाकार में प्रकाशित रचनाओं में विचार लेखक के अपने हैं और हिंदीरचनाकार टीम का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।|आपकी रचनात्मकता को हिंदीरचनाकार देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए help@hindirachnakar.in सम्पर्क कर सकते है| whatsapp के माद्यम से रचना भेजने के लिए 91 94540 02444, ९६२१३१३६०९ संपर्क कर कर सकते है।