रामचरितमानस | गुरुर्प्राथना | सावन – बाबा कल्पनेश
रामचरितमानस | गुरुर्प्राथना | सावन – बाबा कल्पनेश
रामचरितमानस
रामचरित मानस की रचना,करके तुलसीदास।
भारत के हर हृदय-हृदय में,करने लगे प्रवास।।
राम ब्रह्म व्यापक अविनाशी,अवध लिए अवतार।
रामचरितमानस है गायन,जिनका चरित उदार।।
मात-पिता की आज्ञा पालन,बंधु-बंधु का धर्म।
मानव की यह देह प्राप्त कर,करना कैसे कर्म।।
पढ़कर यह सद ग्रंथ अनोखा,जागृत हो उल्लास।।
रामचरितमानस की रचना,करके तुलसीदास।।
थीं विपरीत वृत्तियाँ जागृत,भरत भूमि के मध्य।
तुलसी के तब मन में जागा,जागृत हों आराध्य।।
जिनके चरणों में भारत को,मिले सहज विश्राम।
परम अपावन भी तर जाते,जिनका जप कर नाम।।
सोया भारत जाग सके यह,पढ़े चरित जब खास।
रामचरितमानस की रचना,करके तुलसीदास।।
म्लेच्छ वंश का नंगा नर्तन,त्राहि-त्राहि चहुँ ओर।
रामचरित के गायन से ही,प्रकृटी भू पर भोर।।
मिला आचरण को नव संबल,कसे राम तूणीर।
हुई कृपा इस भरत भूमि पर,द्रवित हुए रघुवीर।
केवल राम नाम के गायन,अद्भुत सफल प्रयास।
रामचरितमानस की रचना,करके तुलसीदास।।
गुरुर्प्राथना
ज्ञान दे खोलते चक्षु को आप ही आप साक्षात ईश्वर विधाता अहो।
ज्ञान के देवता मंत्र दे ज्ञान दे पाप संताप सारे बिदारे रहो।।
दौड़ दे दो सहारा किनारा मिले पार बेड़ा करो हाथ में ले गहो।
डूबता डूबने से बचाना गुरो साध्य पूरा सधे साधना जो कहो।।
आप हैं पूर्ण तो पूर्णता ही मिले क्यों अधूरा रहे क्यों अधूरा रहे।
ज्ञान जो भी मिला आपसे है मिला नित्य जागा रहे क्लेश को क्यों सहे।।
प्रेम से रिक्त हो आप का शिष्य क्यों हीनता को गहे दीनता को गहे।
संत सारे कहे वेद सारे कहे ज्ञान की भीत बोलो भला क्यों ढहे।।
प्रार्थना है यही आपके दास की चित्त में आपका नित्य बसेरा रहे।
आप होते जहाँ ईश होते वहीं वास माया नहीं या अंधेरा रहे।।
शत्रु कोई नहीं मित्र कोई नहीं प्रेम ही प्रेम छाया घनेरा रहे।
दास डूबा रहे प्रेम के सिंधु में नेह के फूल फूलें सवेरा रहे।।
अर्थ कोई लगाए लगाया करे सूर्य देता उजाला उजाला करे।
अर्थ होता उजाला सभी जीव का ले अँधेरा यहाँ का निवाला करे।।
जीव जागें सभी जीवनी अर्थ है जागने के लिए पाठशाला करे।
ज्ञान जीता रहे नित्य आचार में श्रेष्ठता को जिये श्रेष्ठ पाला करे।।
शक्ति दाता गुरो भक्ति दाता गुरो मुक्तिदाता गुरो को नमस्कार है।
अर्थ को जो दुहे ज्ञान दाता नहीं मुग्ध माया करे तो तिरस्कार है।
लेखनी यह लिखे भावना से भरी पृष्ठ देखें पढ़ें सत्य उद्गार है।।
जीविका के लिए ढूँढता शिष्य को धारणा है यही छुद्र आधार है।।
सावन
आया सावन मास ले,हरित रंग उपहार।
धरती निज तन धार कर,लखती देह निखार।।
लखती देह निखार,दिवस यौवन के आये।
हरित खेत-वन बीच,बोल-पिक मोर सुहाये।।
अधरन धरे सुहास,देख निज मोहक काया।
साजन सावन द्वार,हृदय के आँगन आया।।
पावन उर आँगन हुआ,पिय आवन से आज।
मुग्ध मना धरती हुई,छुई-मुई उर लाज।।
छुई-मुई उर लाज,हृदय में अपने धारे।
पिय के सुन पद चाप,उन्हीं के पाँव निहारे।।
धरती अधिक विभोर,देख सम्मुख प्रिय सावन।
उर तल उमड़े मेघ,हृदय तल करते पावन।।
काले-भूरे मेघ दल,लटके भू की ओर।
तन-मन प्लावित कर रहे,सावन एक निहोर।।
सावन एक निहोर,भोर जीवन में लाये।
झींगुर-दादुर बोल,आज वन वीथिन छाये।।
करता हिय किल्लोल,ताप के फूटे छाले।
नाचे मृदु मन मोर,मेघ लख भूरे-काले।।
खेती के दिन चार ये,हर्षित हुए किसान।
पुर्वा भू से सट बहे,लहराते लख धान।।
लहराते लख धान,गोरियाँ झूला झूलें।
भरा हुआ जल ताल,हृदय के पंकज फूलें।।
सुरसरि हुईं अछोर,नहीं दर्शन अब रेती।
मुदित मना है भूमि,देख निज सावन खेती।।
पावन शिव का मास यह,अखिल लोक विख्यात।
पान किए शिव जगत विष,हरे ताप बरसात।।
हरे ताप बरसात,ईश की महिमा न्यारी।
करते शिव अभिषेक,सृष्टि के हर नर-नारी।।
धरती पर इस हेतु,वर्ष में आता सावन।
हरे कलुष विष भाव,हृदय तल करता पावन।।
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