chand-mere-paas-hai

सारे पथ जब बंद न्याय का | प्रतिभा इन्दु

सारे पथ जब बंद न्याय का | प्रतिभा इन्दु

सारे पथ जब बंद न्याय का
रण अभिशाप नहीं है ,
यहां रक्त की नदियां बहती
कोरा जाप नहीं है ,
मत भूलो तुम नियत मात्र हो
इस अखंड प्रभुता का ,
जहां प्रश्न है धर्म , न्याय का
लड़ना पाप नहीं है !

मौन विवशता के सीने में
जलता तप्त अनल है ,
स्वार्थ , घृणा के हृदय क्षीर में
खिलता नहीं कमल है ,
न्याय और अन्याय जगत में
जब – जब टकरायेंगे ,
तब – तब होगा भंग अमन
भीषण विध्वंश अटल है !

सुनो पार्थ यह धर्म – युद्ध
अपनी कायरता छोड़ो ,
सम्मुख है कर्त्तव्य तुम्हारा
रण से मुख मत मोड़ो,
देख रहा इतिहास खड़ा हो
जो है होने वाला ,
नाम कलंकित करो न अपना
अरि का रुधिर निचोड़ो !

प्रतिभा इन्दु

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *