समय के साथ कदमताल करती हैं सम्पूर्णानंद की कवितायें
समय के साथ कदमताल करती हैं सम्पूर्णानंद की कवितायें – डॉ. संतलाल
समीक्षक – डॉ. संतलाल, भाषा सलाहकार देवस्त्रा टेक्निकल सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड ली मेरेडियन कमर्शियल टावर विन्डरसन प्लेस नई दिल्ली
कराहती संवेदनाएं (काव्य-संग्रह) पल्लवी प्रकाशन
डी०750, गली- 4,अशोक नगर,
शाहदरा, दिल्ली-110093
मो.: 09856848581
मूल्य : 250 /
समय के साथ कदमताल करती हैं सम्पूर्णानंद की कवितायें
काव्य मानव जीवन के सतत आयासों का अभिव्यक्त रूप है। जो तत्कालीन वातावरण से प्रभावित होकर युगीन विसंगतियों विक्रेताओं , संवेदनाओं की चुभन जनमानस को कराता है। कवि और कविता दोनों ही अपने तटस्थ रखकर अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता के साथ सूक्ष्मेषणा और चिंतन शक्ति के सहारे नैराग्यपूर्ण वातावरण में आशा का संचार करते है। वह कवि क्या ? जिसकी कविता अपने समय और समाज का प्रतिनिधित्व न कर सके। इस दृष्टि से यदि डॉ. सम्पूर्णानंद की कविता संग्रह ‘ कराहती संवेदनाएँ ’ का सम्यक मूल्यांकन किया जाये तो सहज भावेन संग्रह की रचनायें सहज प्रबोधन के साथ अपने समय से कदमताल करती दिखाई पड़ती हैं।
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प्रायोगिक विचारधारा के कवि संपूर्णानंद नव्यता के आग्रही होते हुये भी किसी वाद या आंदोलन को जन्म नहीं देते किंतु निराशा, कुंठा, हताशा के साथ प्रश्नों की बौछार करते हुये , आगत अनागत को समेटे हुये जीवन के प्रत्येक क्षण को भोगने और सत्य स्वीकार करने का माद्दा अवश्य रखते हैं। इनकी कविता संग्रह में कई कविताएं ऐसी मिलती हैं जो लोग जीवन में गहरे पैठकर कमजोर होते हुए सम्बन्धों में कसावट का उपकर्म करती हैं। ‘गांव की खुशबू’ कविता में गँवई गन्ध का आपूरण और रिश्तों की मजबूती खूबसूरत अन्दाज में व्यक्त की गई है –
“नववधू की सिंदूरी माँग
उषा की लालिमा सदृश दिखती है
कड़ाहे में पके गुड के जरेठे की सोंधी सोंधी खुशबू
पूरे गाँव को सुवासित कर देती थी।”
‘ कराहती संवेदनायें ’ वैचारिक विमर्श का एक अच्छा मंच है। जहां से चौतरफा शाब्दिक प्रहार हो रहा है साथ ही कवि की भावना एक ‘ स्फोटायन ’ की तरह उदभूत हुई है। जो अनायास ही पाठकों तक पहुंचती है। इस सरपत समय में संघर्षों और क्षरित होते जीवन मूल्यों का जो राग छेड़ा है, इससे उसके भविष्य का रचनाधर्मिता का मार्ग सुनिश्चित हो जाता है । कवि को मालूम है कि आज के वक्त घावों पर मरहम लगाकर दिलों को जोड़ा जाये। सहिष्णुता – असहिष्णुता की बहस को खत्म करने के लिए दोनों के गैप को भरा जाये –
“अगर बहना है तो नीर जैसा बहो
चुपचाप बहता जाता है वह
ना किसी से कोई टकराहट
ना कोई भेदभाव
सबको संस्पर्श करते हुये
चिर प्रस्तरों को नमन करते हुये।”
कवि की सादी जुबान से छोटी पंक्तियों में कही गयी गंभीर बातें संवेदनात्मक स्तर पर पराकाष्ठा तक पहुंचती है। कोई भी रचनाकर्म असामान्य को नहीं नकारता किंतु साधारण को त्यागना भी नहीं चाहता है। इसी परिप्रेक्ष्य में कवियों की कविताये क्रांतिमूलक बन जाती है । मिश्रा जी ने अपनी कविता में सामान्य और आस – पास की चीजों को उठाकर अपनी तरफ से उसमें चुभकाव पैदा करते है, कचोटपन की ताजगी भरते हैं तब कहीं जाकर कविता मुकम्मल हो पाती है –
“ महानगरों की मरती संवेदनाओ की तराजू पर,
गरीब गर्भवती गांव की महिलाये
रोटी के टुकड़े के लिए जोखी जा रही है
उधर पूंजीवाद
अपनी अपनी प्रियतमाओं के साथ
रनिवास मैं मस्त है।” अथवा
“रोटी तुम तप्ता हो गई हो
गेहूं से रोटी पकने / तक की यात्रा में।”
समकालीन हिंदी कविता के फलक पर डॉ. सम्पूर्णानंद मिश्र के हस्ताक्षर हो चुके हैं। जीवन और जगत की अनेक वस्तु स्थितियों का साक्षात्कार करते हुए अपनी भाषिक संरचना में एक विशेष प्रकार की ताजगी दी है। आंतरिक लयता को ध्वनित करते हुए कवि ने अपनी काव्य दृष्टि को विस्तारित किया है। आम आदमी का दुख दर्द अपनी पीड़ा समझकर व्यक्त किया है।
“मुझे गरीबों के लिए हर जनवरी व्यर्थ है
रोज कुआं खोदकर पानी पीना है
और ऐसे ही जीना है
कोई फर्क पड़ने वाला नहीं
इन लकीरों को भरने वाला कोई नहीं।”
प्रस्तुत संग्रह में जनवाद की झलक भी देखने को मिलती है। जनता से बिना लाग – लपटे बिना किसी दिखावे के सीधे जुड़ जाना उनकी असंगति विसंगति और विषमता को मुखर कर देना ही जनवाद है। जन गण मन की भावना का यथार्थ चित्रण पूंजीपतियों सामंतशाही का विरोध यहां तक कि सत्ता का विरोध कोई सच्चा जनवादी कवि ही कर सकता है –
इन रसूखदारों का क्या
इनका घर के चूल्हे तो हँस रहे हैं
इसीलिए उनके चेहरे पर हँसी है
हम लोगों का क्या
अगर कुछ दिन ऐसे ही रहा
तो हम लोग ताली थाली
बजाने लायक भी नहीं रह जाएंगे।”
‘ रेत की भीत ’ अपनी सार्थकता के साथ अवतरित है।व्यंजनात्मक रूप से यह रचना बहुत कुछ कहती है और सोचने के लिए विवश करती है। नए और पुराने ( पौराणिक ) प्रतीकों के सहारे कवि ने दूर तक सोचा है और आगाह भी किया है –
“ बचा है रावण अब भी हमारे भीतर
मुक्त हो जाएगा रावण
उस दिन सदा सदा के लिए
जब झड़ जायेगा पूँछ की तरह हमारा दर्द।”
कथ्य की भाँति कराहती संवेदनाओ का शिल्पगत वैशिष्ट्य भी सुंदर है। भाषिक दृष्टि से कवि सजग रहा है वाचिक बनावट को जीवित रखते हुए संप्रेषणीयता का पूरा ध्यान रखा गया है। विषयों की आत्मीय उपस्थिति को सजीवन प्रदान करने के लिए मुहावरों का प्रयोग स्वभाविक है जो अनायास ही आये हैं। इससे भाषा में चमक आई है। हिंदी , उर्दू , तद्भव, तत्सम देशज अंग्रेजी सहित ग्रामीण परिवेश के शब्दों का प्रयोग करना कवि की निजी विशेषता है। लोग जीवन से जुड़ाव होने के कारण इनकी काव्य भाषा उस स्तर की है जहां मानक हिंदी फेल हो जाती है। यही कारण है कि कवि जनता के वेदनात्मक पक्ष को उभारने में सफल रहा है।
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संग्रह की कविता के शब्द बोलते हैं और जब शब्द बोलने लगे तो यह मान लेना चाहिए कि प्रतिमान अपने आप गढ़ जायेगे। रसोंद्रेक स्वयमेव हो जाएगा। ‘ कराहती संवेदनाओं ’ की कविताओं से , इसके शाब्दिक प्रहार से नवोन्मेष की कली का प्रस्फुटन कवि की नई कविता के क्षेत्र में धमाकेदार उपस्थिति है । यह धमाका लगातार फूटेगा डॉ. सम्पूर्णानंद मिश्र से मैं इसी प्रकार की उम्मीद करता हूं। पुनः पुनः कवि की ऊर्जस्विता को नमन।
डॉ. संतलाल , भाषा सलाहकार
115 , सेक्टर – 03
दूरभाष नगर
रायबरेली ( उत्तरप्रदेश )
मोबाइल नंबर – 07348751297
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