Sankat- संकट/ बाबा कल्पनेश | ullaala chhand

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संकट

विधा-उल्लाला छंद

जय उल्लाला जय कहो,जय बोलो हनुमान की।
दत्त चित्त हो जय लिखो,भारत राष्ट्र महान की।।

आतंकी की जय हुई,हार हुई अफगान की।
कौन बुरा-अच्छा यहाँ,संकट है पहचान की।।

नीति-न्याय की हार है,चुनी हुई सरकार की।
तालिबान शासन हुआ,बारूदी बौछार की।

लक्षण अच्छे ये नहीं,खतरा दिन-दिन बढ़ रहा।
यह भय प्रद तूफान है,प्रति पल ऊँचे चढ़ रहा।।

साधु चुनी सरकार का,मान निरंतर ही घटे।
उदाहरण यह मेटिये,विश्व मान संकट कटे।।

अफगान आज रोया लगे,कल रोएगा पाक भी।
आने वाले दिन सभी,सह न सकेगा नाक भी।।

सावधान हो विश्व यह,और सजग हर देश हों।
मानवता रक्षित रहे,नष्टागत के क्लेश हों।।

बर्बर सभ्य समाज हो,तनिक ढील मत दीजिए।
साधु सभ्यता ही रहे,ऐसा निर्णय लीजिए।।

लौह चना उत्पाद के,नहीं कारखाने लगें।
साधु सभ्यता पक्ष के,शिशु जवान बूढ़े जगें।।

कल्पनेश उल्लास का,नित्य यहाँ दर्शन मिले।
अंतहीन यह सिलसिला,सुमन प्रफुल्लित हों खिले।।

मानव सा बर्बर नहीं,जीव धरा का अन्य है।
करुणालय यह मनुज तन,और नहीं अनुमन्य है।

बस करुणा ही श्रेष्ठ है,हर संकट यह टाल दे।
सौख्य प्रदा धरती रहे,सुख वैभव हर हाल दे।।

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बाबा कल्पनेश
श्री गीता कुटीर-12,गंगा लाइन, स्वर्गाश्रम-ऋषिकेश

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