shaeed shailendra pratap par kavita-दयाशंकर

shaeed shailendra pratap par kavita

शहीद शैलेन्द्र प्रताप पर कविता 


 बालक शैलेन्द्र का बाल्यकाल,

ग्रामांचल मध्य व्यतीत हुआ।

 

प्रारंभिक शिक्षा हेतु माता ने,

ननिहाल नगर को भेज दिया ।

 

अपने सीमित श्रम साधन से,

प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण किया।

 

चल पड़े कदम देश की सेवा को,

दायित्व भार जो मिला तुम्हे,

उसको पूरा करना होगा ।

 

है शत्रु खड़ा जो सीमा पर,

उसका रण-मद हरना होगा।

 

रण की वेदी पर कभी कभी,

कुछ पुष्प चढ़ाने पड़ते हैं।

 

कुछ महा वीर होते शहीद,

जो मातृभूमि हित लड़ते हैं।

 

वह मौन हो गया परमवीर,

अपने पीछें संदेश छोड़ गया ।

 

भावी युवकों की आंखों को,

भारत की सीमा की ओर मोड़ गया।

 

स्वर गूंजा मत रोना मुझको तिरंगे में लिपटे होने पर,

मत तर्पण करना आंखों के पानी का।

 

करना है तो तर्पण करना,

सीमा पर प्रखर जवानी का ।

 

श्रद्धांजलि मुझको देते हो,

तो साथ शपथ लेनी होगी।

 

भारत की सीमा पर वीरों प्राणों की आहुति अपनी देनी होगी।

जो दीप जलाया है मैंने,

वह बुझे नहीं बरखा व तूफानों से।

 

उसकी लौ क्रीड़ा करती रहे सतत, आजादी के परवानों से।

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दयाशंकर

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