श्रद्धा बनाम छल | सम्पूर्णानंद मिश्र
श्रद्धा बनाम छल | सम्पूर्णानंद मिश्र
नारी जब जब
तुमको कुचला जाता है
हृदय दहल जाता है
अब तुम सीता लक्ष्मी
अहल्या जैसी बन कर
जी नहीं सकती हो
दिन में भी तुम
सुरक्षित नहीं रह सकती हो
अब बिना खड्ग धारण किए
इन हवस के दरिंदो से
अपनी अस्मिता नहीं
बचा सकती हो !
अभी निर्भया कांड को
देश नहीं भूला पाया था
फिर से भारत मां के
माथे पर
हवस के दरिंदो ने
काला टीका लगा डाला था
एक और प्रियंका रेड्डी के
सपनों के मुकुर को
चकनाचूर कर डाला
अब नारी तुम केवल श्रद्धा हो!
यह पंक्ति मैं जयशंकर प्रसाद जी की कामायनी से निकाल
देना चाहता हूं
क्योंकि इसकी ओट में
घात लगाए और दरिंदें बैठें हैं ।
अब बिना चंडी बने
पार पा नहीं सकती इनसे
इस भारत भूमि पर अपनी
मर्यादा का इतिहास नहीं
बना सकती
आज जयशंकर प्रसाद जी
जीवित होते तो
नारी तुम केवल श्रद्धा हो!
पंक्ति लिखकर भी फाड़ डालते
और तुम्हारे करों में एक
खड्ग पकड़ा जाते
कि शालीनता मर्यादा की नैया
से तुम इस भवसागर को
नहीं पार कर सकती हो
इन मधु कैटभ रूपी
हवस के दरिंदो से नहीं जान
बचा सकती हो!
नारी तुम केवल श्रद्धा हो
का भाव लिए अपनी अस्मिता
की रक्षा अब और नहीं कर
पाओगी
इन दरिंदो से तो निपटने के लिए
बिना चंडी बने नि:शेष जीवन
नहीं जी पाओगी!
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874