daree huee praja/डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
डरी हुई प्रजा
(daree huee praja)
राजा था वह
डराता था प्रजा को बहुत
शोषक था वह
भयाक्रांत थे शोषित उससे
प्रशासन की बागडोर
भी संभाली थी उसने
अधीनस्थ कर्मचारियों को
आतंक का बंदूक
दिखाता था
खूब मज़ा आता था उसे
नहीं पता था उसे
बिना प्रजा के राजा
बिना शोषितों के शोषक
और बिना अधीनस्थ कर्मचारियों
के प्रशासक का
नहीं कोई वजूद होता है
बावजूद इसके रक्त चूसता रहा
प्रजा ने बगावत कर दी एक दिन
शोषितों ने
जन्म – जन्मांतर से
ग्रीवा में पड़ी
शोषण की माला तोड़ दी
अधीनस्थ कर्मचारियों ने
शासन ले लिया
हाथ में अपने
साहब! उस दिन
मुझे लगा ऐसा
कुछ संशोधन किया गया
संविधान में देश के
सही अर्थों में न केवल
आजाद हुआ
शोषित उस दिन
बल्कि अपने माथे पर
सदियों से चिपकी
ग़ुलामी के पन्नों को
सदा- सदा के लिए फाड़ डाला
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874
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