Ek Haseen Sham- एक हसीं शाम

Ek Haseen Sham- एक हसीं शाम 

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एक हसीं शाम


आँचल  को दबा कर दांतो में
इक शोख हंसी  भर आंखो में ,
तुमने इक बार शरारत से ,
पूछा था, प्यार किया है क्या ?

आँखों में एक नशा घिर कर ,
जुल्फें शानो पर गिर- गिर कर
अंदाज़  नये – वो अदा नयी ,
कहती थी-जाम पिया है क्या ?

होंठों पर शबनम की बूंदें ,
हुस्नों -शबाब पलकें मूंदे  ,
दो खिली गुलाबी पॅखुडियां ,
मय-जाम लुटा, भरती थी आह ।

चेहरा था या वो आफताब ,
नूरानी आलम ला-जवाब ,
मदहोशी में हुस्नों-शबाब ,
हो कोई हकीकत या सपना।

तुम दौड़ उठी बिजली सी बन
हाथों में आया लाल रिबन ,
मछली सी तड़पन फिर सिकुड़न ,
दामन में ख्वाबों की मलिका ।

रुखसार हया की शोखी से ,
आलम की उस मदहोशी से,
सुर्खो -शबाब सरगोशी से ,
लम्हा मैं भूल नहीं सकता ।

जन्नत की हाय हसीना थी ,
नौ-लख में जड़ा नगीना थी ,
हंसती  तो झड़ती फुलझडियां,
कोई देखे तो हो जाए फिदा ।

क्या लौट नहीं सकते वो दिन,
माशूक मखमली सी कमसिन
आ जाए जिन्दगी में फिर से ,
फरियाद है मेरी खुदा- खुदा ।

ये चमन विराना खिल जाए ,
जन्नत का नज़ारा मिल जाए ,
आ जाए हसीं दस्तक देकर ,
इस दिल में बसा ले घर अपना ।

कोई लूट सके ना यह सपना।
सपना है पथिक मेरा अपना।।

१.शोख- चंचल ,  २.शानो -कन्धों , ३. जाम – प्याला, ४ , शबनम- ओस ५. हुस्नों-शबाब- सौंदर्य  की चमक , ५. आफताब -सूर्य , ६. नूरानी-ईश्वरीय,  ७. आलम- दुनिया ,  ८.दामन- आलिंगन , ९.रुखसार- कपोल या गाल , १०. कमसिन- कोमल,  ११. चमन-बागजन्नत – स्वर्ग ।

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सीताराम चौहान पथिक

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