Sad Hindi kavita | मैं और तुम | सीताराम चौहान पथिक

Sad Hindi kavita | मैं और तुम |

 मैं और तुम 


याद तुम्हारी जब जब आई ,
तड़पा हूं मैं खूब यहां ,
तुमको जो मंजूर  नहीं था ,
रोया हूं मैं खूब यहां ।

कभी कभी यूं लगता है ,
आ कर करीब कुछ कहती हो
मायूस हुए दिल को मेरे ,
सहलाती हो रख हाथ वहां ।

फूलों को जब जब हंसते  देखा
याद बहुत तुम आई हो ,
नदियों की इठलन में पाया ,
उसमें तुम्ही समाई हो ।

आसमान में बिजली कौंधी ,
मुस्काते तुमको ही पाया ,
सूरज की सुरमयी आँख  में ,
तुम उदास चेहरा लाई हो ।

भंवरो  की गुंजन  में दिलबर ,
गीत तुम्हारे ही गूंजे है ,
शहनाई की हर इक धुन में ,
नगमे तुम्हारे ही गूंजे हैं ।

सरगम बिगड़ गई तो क्या ,
दिल की सरगम पर ,
ग़ज़ल बनी ऐसी रूमानी ,
जोड़ जोड़ कर सुर गुंथे  है ।

दिल में है दर्दे – मोहब्बत ,
जाएगा, जाने के बाद ,
फिर मोहब्बत जिन्दा होगी ,
लौट कर आने के बाद ।

फिर फिजा में गूंज उठेगा ,
तराना प्यार का ,
हर लहर पर लिखा होगा ,
ऐ मोहब्बत जिन्दाबाद ।

आइने में अक्स इक ,
आता उभर कर बार बार ,

लगता है पहचाना हुआ ,

पिछले जन्म का जैसे प्यार।

क्या करूं ॽ कैसे कहूं ॽ
जिन्दा है अक्से – ‍आइना ,
वो आइने में मुद्द्तों से  ,
कर रही हो इन्तजार ।

आओ बैठो दिल में महरम ,
अपने माजी को तलाशें ,
याद कर रंगीनियो को  ,
बुत नये दिल में तराशें ।

भूल जाएं ग़म के साए ,
जो जुदाई बन के छाए ,
साथ बैठे हैं – तो क्यों ना ,
हम सुनहरी दिल तराशें ।

क्या हुआ गर दूरियां है ,
दिल से दूरी तो नहीं ,
अपने दिल के आईने में ,
कोई मजबूरी नहीं ।

जब भी पलकें बंद हुई ,
तुम मुस्कुराती दिख गई ,
ये आईना इशके- खुदाई ,
यहां पर, पथिक दूरी नहीं ।।


Sad Hindi kavita
सीताराम चौहान पथिक

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