Ishk- Khudaee | इश्क- खुदाई / सीताराम चौहान पथिक
Ishk- Khudaee | इश्क- खुदाई / सीताराम चौहान पथिक
इश्क- खुदाई ।
क्या क्या है मेरे दिल में ,
तुम्हें कह नहीं सकता ।
दिल पर जो गुजरती है ,
उसे सह नहीं सकता ।
जो जख्म मेरे दिल में है ,
दिखलाऊं किसे मैं ॽ
घुट घुट के जी रहा हूं ,
ये बतलाऊं किसे मैं ॽ
आते हैं मुझे याद – वो ,
लम्हे जो जिए थे ।
मर – मिटने के पैगाम ,
मुहब्बत में दिए थे ।
गुमनाम जहां से ज़रा ,
आवाज़ तो दे दो ।
बेताब मेरा दिल है ,
मेरे ख्वाब में कह दो ।
सुनता हूं कि रूहें ,
दिले – दिलदार से मिलती।
ग़म अपने बांटती हैं ,
कली दिल की महकती ।
सौ बार तुम्हें दिल से ,
पुकारा है मेरे दिल ने ।
तुम चीर कर अंधेरे ,
आ जाओ मुझसे मिलने ।
ऐसे ही वक्त मेरा ,
गुजरा है ज़िन्दगी में ।
तुमको खुदा है माना ,
तुम्हारी बंदगी में ।
मुहब्बत खुदा है – सदियां ,
कहती रहीं हैं अब तक ।
ये इश्क है – खुदाई ,
जिए पथिक ये जब तक ।।
सीताराम चौहान पथिक
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