Kaise Ganga Putr – कैसे गंगा – पुत्र/ सीताराम चौहान पथिक
Kaise Ganga Putr – कैसे गंगा – पुत्र/ सीताराम चौहान पथिक
कैसे गंगा – पुत्र ।
युगों-युगो से मां गंगे ,
पर-हित इतिहास तुम्हारा।
तॄषित – जनों की प्यास बुझाती ,
मां, तेरी अमॄत – धारा ।।
हिम-शिखरो से बन प्रपात ,
ऋषि-मुनि के चरण पखारे ।
वेदों में गंगा की महिमा ,
शिव की जटा संवारे ।।
पावन विमल हिमालयी गंगा ,
कलि- मल हरने वाली ।
कॄतघ्न मनुज ने मां तुम्हारी ,
दुर्गति कैसी कर डाली ।।
गंगा हुई प्रदूषित पगले ,
तूने क्या कर डाला ।
घोर प्रदूषण और रसायन ,
अमॄत थी , बन गई हाला ।।
गंगा को तू कहता माता ,
तू कैसा पूत बना रे ।
मां गंगा सिर धुनती कहती ,
कैसा पूत जना रे ।।
गंगा – पुत्र कहाना है तो ,
गंगा की कद्र करो रे ।
गंगा स्वच्छ और निर्मल होय,
कोई जन-हित कर्म करो रे ।।
गंगा से भारत की महिमा ,
बिन गंगा के अस्तित्व नहीं ।
गंगा की रक्षा करो पथिक ,
बिन गंगा के व्यक्तित्व नहीं।।
सीताराम चौहान पथिक
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