कलियुग में दो श्रवण कुमारों की गाथा- सीताराम चौहान पथिक
कलियुग में दो श्रवण कुमारों की गाथा- सीताराम चौहान पथिक
कलियुग में दो श्रवण कुमारों की गाथा ।
प्रथम गाथा
दिल्ली धन्य हुई जब उसने ,
एक श्रवण को देखा ।
रामायण साकार हो गई ,
कांधे कांवड़ को देखा ।।
कांवड़ में मां-बाप वृद्धतम ,
हरिद्वार में स्नान कराया ।
धन्य-धन्य संजीव श्रवण ,
सावन में दुर्लभ पुण्य कमाया
हरिद्वार आते और जाते ,
श्रद्धालु झुकते शीश नवाते ।
कांवड़ बैठे मात-पिता को ,
अपने श्रद्धा-सुमन चढ़ाते ।।
लाला राम पिता और माता ,
सावित्री की पुण्य कमाई ।
ऐसा पुत्र – रत्न जो पाया ,
श्रवण कुमार की याद दिलाई
सुत संजीव श्रवण सम रूपा,
सीलम पुर दिल्ली का वासी ।
धन्य-थन्य दिल्ली की नगरी ,
सेवा- भावना को शाबाशी ।।
एक मास क्रमशः दिन राती ,
कांवड़ में मां-बाप बिठा कर।
हरिद्वार से जल भर लाया ,
शिव-मन्दिर वैलकम में आकर ।।
शिव-लिंग जलाभिषेक करने पर ,
उसने नव-इतिहास रचा है ।
भारतीय संस्कृति का स्वर्णिम
काल अभी भी शेष बचा है ।।
मात-पिता की अद्भुत सेवा ,
संजीव – रत्न से ही संभव है ।
कलियुग में ऐसा प्रमाण ,
संभव हो जाए, असंभव है।।
भारतीय संस्कृति का नव-युग
श्रवण – रूप साकार हुआ है ।
यह प्रतीक है उज्जवलता का,
त्रेता मानो साकार हुआ है।।
यदा-कदा कलियुग में भी ,
चमत्कार – – दिख जाते हैं ।
सतयुग की झलक दिखला कर ,
प्रेरक व्यक्तित्व बन जाते हैं।
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द्वितीय गाथा ।।
धन्य-धन्य कैलाश गिरि ,
जय मातॄ – भक्त कैलाश ।
कलियुग में श्रवण सजीव ,
हुए कांवड़ में अंधी मात।
चार धाम – – माता की इच्छा ,
कैलाश गिरि ने संकल्प लिया
अविवाहित – – भीष्म प्रतिज्ञा की ,
मां-सेवा को हॄदयस्थ किया।।
चार धाम- – कांवड़ काँधे पर ,
दो दशक निरन्तर भ्रमण किया
सम्पूर्ण चार-धाम की यात्रा ,
फिर मथुरा वृन्दावन गमन किया ।।
कैलाश गिरि- -वह मातॄ भक्त,
जिन-जिन राहों से गुजर गया
लोगों ने लेकर चरण- धूलि ,
सत- युग को मानो स्मरण किया ।।
कैलाश- – जबलपुर का वासी
हुई धन्य वहां की मॄदु माटी।
कलियुग में सतयुग दिखलाया ,
तुम से प्रेरित पर्वत – घाटी ।।
सीताराम चौहान पथिक
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