माली की तलाश | Mali Ki talaash
माली की तलाश | Mali Ki talaash
माली की तलाश ।
आओ तुम को में सुनाऊं ,
इस चमन की दास्तां ।
कैसे बिखरा पत्ता – पत्ता ,
कैसे उजड़ा बागबां ।
ये चमन सब से हसीं था ,
शहर की बस जान था ।
खिलखिलाते हसीं चेहरे ,
आशिकों की शान था ।।
सिरफिरों ने कैसे आकर ,
पत्तियों – कलियों को नोचा ।
मसल डाले फूल – पत्ते ,
इंसानियत को था खरौंचा ।।
माली चमन का बिक गया ,
गुलशन तो बे- जुबान था ।
मंहगाई की सूली पे ,
माली का टंगा ईमान था ।।
कैसे बताऊं ॽ किस तरह ,
शाखों चीखी बुलबुलें।
सैय्याद की गोली चली ,
ख़ामोश हो गई हलचलें ।
ये चमन उजड़ा हुआ – – –
माली की फिर तलाश है ।
जो बहारें इनमें ला सकें ,
कली – कली उदास है ।।
वतन वालो, चमन गुलजार हो
कोई अच्छा माली भेज दो ।
जज़्बा हो देश- भक्ति का ,
कोई ऐसा माली भेज दो ।।
रौंदी हुई कलियां सिसकती ,
चीखती हैं – – – बुलबुले ।
फिर से कलियां खिल उठे ,
पथिक फिर से गूंजे हलचले।।
कठिन शब्द
१.चमन- बाग ,
२. दास्तां – कहानी
३. हसीं – सुन्दर ,
४. सिरफिरे-उपद्रवी ,
५. सूली- फंदा ,
६.सैय्याद – शिकारी ,
७.तलाश-खोज ,
८.वतन – देश ,
९.गुलज़ार- हरा भरा ,
१०. जज़्बा- जोश ।
सीताराम चौहान पथिक
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