मीन और मीनाक्षी | सीताराम चौहान पथिक
मीन और मीनाक्षी | सीताराम चौहान पथिक
मीन :
मैं मीन तू मीनाक्षी ,
संतुष्ट मै तू क्यों नहीं ॽ
समझी, तू महत्वाकांक्षी।
बैठ मेरे पास हे मीनाक्षी ।
मेरा निलय जल-कुंड ,
मैं संतुष्ट परिवारी सभी।
ईर्ष्या विद्वेष और विश्वास- घात ,
तुम ही जानो, हम अछूती है अभी ।
इच्छाएं सीमित प्रेम-पूंजी ,
मिल-बांट हम सस्नेह रहतीं।
किन्तु तुम मीनाक्षी, कितनी अशांत ,
सुविधाओं के भंडार , सुख संसार ,
तेरे पास – – – फिर क्यों ॽ
ईर्ष्या वश सह रही कुंठा अपार ॽ
देख, नाना नस्ल जाति धर्म
और किस्में हमारी
शान्ति , सह- अस्तित्व में विश्वास ।
हम तो बस इतना ही जानें ,
सुलझ जाती हैं समस्याएं- -हमारी ।।
मीनाक्षी :
तू तो है बस मीन – –
आवश्यकताएं तेरी क्षीण ,
अल्पाहारी मित व्यययी जल में ही लीन।
तू क्या जाने संघर्ष का सुख ,
हम है महानगर की हलचल ,
जीतें तो कहलाएं सिकंदर ।
शांत बैठ जाऊं , तू कहती
तब तो विकास ही थम जाएगा – –
हम तो हैं विकास के पहिए ,
प्रगति राष्ट्र की हम पर निर्भर।
तू क्या जाने प्रजातंत्र और
राजनीति को
सत्ता- हित में कैसे – कैसे ,
पड़े बेलने पापड़ हमको ,
फिर भी हम संतुष्ट सुखी
ज्यों गूंगे का हो गुड़ ।।
जन- सेवा में लीन
भूल अपनों की चिंता – – –
मान और सम्मान प्राप्त कर कर लेने पर भी ,
प्रतिपक्षी को धूल चटाने की
अति चिंता ।
अपनों से हम विमुख यही
जन – सेवा का फल ,
लोकप्रिय सत्ता का सुख
पाने की खातिर ,
कुछ तो मूल्य चुकाना होगा
हमको आखिर ।।
हम सशक्त नारी नवयुग की ,
पीड़ित को अधिकार दिलाएं
शोषित है नारी समाज में ,
उसे प्रगति की राह दिखाएं ।
मीन :
हम तो हैं अति निपट निरक्षर,
राजनीति को हम क्या जाने।
सदा स्नेह- सागर में रहतीं – –
प्रेम और ममता पहचानें ।
हम भी नारी – तुम भी नारी ,
हम संतुष्ट तुम चिन्तित भारी
प्रबल महत्त्वाकांक्षी होना – –
नारी- सुलभ स्वभाव नहीं है
सरल सौम्य श्रद्धा पावनता – –
सद्गुण से आभूषित नारी ।।
नारी का अहं शान्ति में बाधक
परिवार समाज का है घातक।
नारी विनम्र शालीन मधुर – – –
दोनों समाज की सुर-साधक
इसलिए सुनो मीनाक्षी तुम ,
हम सरल मीन तुम नारी निपुण ।
क्यों नीति शब्द को भूल गई ॽ
राजनीति का है जो मौलिक गुण ।।
मीनाक्षी :
श्रद्धेय मीन तुम हो प्रवीण ,
तुम दिग्दर्शक हम दिशाहीन।
आभारी हैं- – तुमने हमको ,
संमार्ग दिखाया है नवीन ।।
अब राजनीति में- नीति तत्व ,
को अपनाएगा प्रजातंत्र ।
ग्रन्थों तक सीमित ना रह कर,
जन जन में सच्चा प्रजातंत्र ।।
विस्मृत गांधी पुनः जीवित होगा ,
संजीवनी – नीति को पाकर ।
पथिक – राम राज्य आएगा ,
प्रजातंत्र के दीप जला कर ।।
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