तेरी सुधि की अमराई से | हिंदी कविता | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश
तेरी सुधि की अमराई से | हिंदी कविता | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश
तेरी सुधि की अमराई से
तेरी सुधि की अमराई से,
मलय सुरभि ले आता है।
मेरी उखड़ी सॉसों को प्रिय,
सन्देश नया दे जाता है।।
जब-जब सोचा,कैसे होंगे,
प्रियतम का कुछ हाल कहो।
दृग-चौखट से खारा ऑसू,
निर्झर सा बह जाता है ।
कभी न सोचा दिन ऐसे भी,
आकर स्वतः चले जायेंगे?
नहीं-नहीं,सम्बन्ध स्नेह का,
अमर सदा हो जाता है ।।
लाड-प्यार से तुमने ही तो,
स्नेहिल भाव दिखाया था,
जब-जब खाओ याद करोगे,
पल-पल प्रिय तड़पाता है ।
नेह-सिन्धु की लहर तुम्हारी,
आकर मुझे भिगो जाती है।
निःशब्द तेरे अरुणाभ अधर,
मन पागल हो जाता है।।
मन विभोर बस इतना कह दो,,
हॅस कर स्नेह जताया क्यों?
कुशल-क्षेम बस चाहूॅ प्रियवर,
गन्तव्य यहीं मिल जाता है।।
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