सुर्खुरूॅ होने में, वक्त लगता है | सजल | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘ हरीश’
सुर्खुरूॅ होने में, वक्त लगता है | सजल | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘ हरीश’
सुर्खुरूॅ होने में, वक्त लगता है।
सिलसिला यादों का ,चलने दीजिए,
ख्वाब सा ख्यालों में, रहने दीजिए।1।
मैं नहीं मॉगता ,जागीर दे दो,
दिले-दरम्यॉ मुझे ,रहने दीजिए।2।
बस्ल के दो लम्हे, बेशकीमत होंगे,
अभी तो गमे-हिज्र में, जलने दीजिए।3।
सुर्खुरूॅ होने में, वक्त लगता है,
बर्फ सा गुरूर को, गलने दीजिए।4।
नजरंदाज न करना, मेरी ख्वाहिश तू,
लोगों का काम है, कहने दीजिए।5।
चश्म-ए-नूर ,मेरी जान हो तुम,
ख्वाब तुमसे हसीं , पलने दीजिए।6।
वक्त की मार ,बहुत देखी है,
नादॉ-ए-दिल दिल से, मिलने दीजिए।7।
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