सर्दी की रात | रत्ना सिंह
ये बात सुन- सुनकर कान तक गये थे कि कोई काम असम्भव नहीं है बस हम उसे करना चाहें तो —वो बात और है कि हम काम करना नहीं चाहते … Read More
ये बात सुन- सुनकर कान तक गये थे कि कोई काम असम्भव नहीं है बस हम उसे करना चाहें तो —वो बात और है कि हम काम करना नहीं चाहते … Read More
गणतंत्र पर बदलाव सब कुछ बदल रहा है बदलाव और भी हो सबल हो सब सुखी निर्बल के मुंह में कौर भी हो दीपक की रोशनी से शहर सराबोर हो … Read More
फिर मोचीराम (प्रिय कवि धूमिल को याद करते हुए) बाबूजीजिनके पास शब्द थेवे मंडी में बैठ गए और जो अक्षरों के आगेअंधे थेउनकी आँखें निकाल ली गईंऔर कमज़ोर डंडे मेंएक … Read More
फ्लाई ओवर के नीचे चमचमाती फ्लाई ओवर की सड़कों के ठीक नीचेएक दुनिया बसती हैजोबहुत साधारण सी दिखती हैइस दुनिया मेंअनगिनत ऐसेलोग हैंजिनकी ज़बानसे ज़्यादाआंखें चलती हैंगरीब कहते हैंइस विचित्र … Read More
मंदार माला सवैया | Mandaar Mala Savaiya मंदार माला सवैया=7×221+2 हे राम रामा जपो दुःख छूटे इसी से सधे मुक्ति की कामना।ज्ञानी यही ज्ञान संदेश देते करो राम के नाम … Read More
यह फैसला मेरा है / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’ वह फैसला तेरा था ,यह फैसला मेरा है,जायेंगे किस तरफ,हर तरफ अंधेरा है।1। ख्वाब देखे जो साथ तेरे, वे खूबसूरत थे,गर्दिशी दौर … Read More
Short poem on Swami Vivekananda in Hindi | स्वामी विवेकानंद पर नयी कविता स्वामी विवेकानंद की जयंती विशेष पर कविता जागो राष्ट्र निवासी मेरे,जागे भारत देश।जहाँ जागरण हो जाता है,रहता … Read More
अनगिन रूप सॅवरती हिन्दी / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’ हिन्दी है अभिमान हमारा,हिन्दी से सम्मान,हिन्दी से ही आज विश्व में,भारत की पहचान।1। जग की प्यारी न्यारी भाषा,अपनी सुन्दर हिन्दी,नेह लुटाती मधु बरसाती,सुखदा … Read More
जवाब ढूंढती महिला / रत्ना सिंह कभी- कभी ऐसी घटनाएं सामने उभर कर आ जाती हैं कि समझ में ही नहीं आता कि भला इनको बाहर कैसे उगलू ?और यदि … Read More
कबीर के राम और तुलसी के राम | अशोक कुमार गौतम “राम” शब्द को वैज्ञानिक आधार पर भी देखा जा सकता है। “रा” वर्ण का जोर से उच्चारण (महाप्राण ध्वनि) … Read More
माता वीणा पाणि की,जिस पर कृपा अपार / बाबा कल्पनेश माता वीणा पाणि की,जिस पर कृपा अपार।अपने आँचल छाँव में,रखती उसे दुलार।। भाव सरोवर में खिले,पुलकित उसका भाल।नित-प्रति वंदन पद … Read More
सुरेखी काकी | रत्ना सिंह | हिंदी कहानी वक्त कब बदल जाए ये बात सुरेखी काकी को पता थी लेकिन इतना बदल जायेगा उससे बिल्कुल अनभिज्ञ थी । वैसे भी … Read More
ख़ारिज करता है पिता / सम्पूर्णानंद मिश्र नहीं पनपसकता लघु पौधाबरगद की छांव मेंपिताख़ारिज करता हैउक्त कथनक्योंकिस्पष्ट अंतर दिखाई देता हैपिता और बरगद मेंजहां पिताआत्मीयजन कोअपना सिरमौर बनाता हैस्नेह के … Read More
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी दिवस पर कविता | VISHVA HINDI DIWAS PAR KAVITA हिंदी से पहचान हमारी,हिंदी हमको प्यारी।जय दे जय हो बोल-बोलकर,चलो बजाएँ तारी।।अँग्रेजों से लड़कर जिसने,दी हमको आजादी।एक नवल पहचान … Read More
लक्ष्य बनाकर चलना सीखो / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’ लक्ष्य बनाकर चलना सीखो,बन कर फूल महकना सीखो।1।धरा-गगन सब बनें सहायक,ऋतु सा रूप संवरना सीखो।2।मीठी सरस मधुर वाणी में,कोयल सा तुम कहना … Read More